Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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गया।
६१.
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पञ्च । समह कर पूजे हैं. वह सीता पतिव्रता समस्त सतीयों के सिर पर विराजे है गुणोंकर महा उज्वल उम
के यहां श्रावने की अभिलाषो सवों के है यह सब लोक माता ने ऐसे पाले हैं जैसे जननी पुत्रकोपाले
सो सबही महा शोककर गण चितार चितार रुदन करे हैं ऐसा कौनहै जिसके जानकीका शोक न होय । इसलिये हे प्रभो तुम मा बातों में प्रवीणहो अब पश्चात्ताप तजो पश्चात्ताप से कछु कार्यकी सिद्धि नहीं । जो श्रापका चित्त प्रसन्न है तो सीताको हेरकर बुलाय लेंगे और उनको पुण्य के प्रभाव कर कोई विघ्न
नहीं अाप धीर्य अवलंबन करवे योग्य हो इस भांति लक्षमण के वचनकर रामचन्द्र प्रसन्न भये कछ Hएक शोक तज करतब्य मनधरा भद्रकलश भंडारीको बुलायकर कहीं तुम सीताको श्राज्ञासे जिस विधि
किम इच्छा दान करतेथे तैसेही दियाकरो सीताके नाम से दान बटे तब भंडारी ने कही जो आप अाज्ञा करोगे सोही होयगा नव महहीने अर्थियोंको किम इच्छा दान बटियो कीया, रामके अोठहज़ार स्त्री तिनकर सेवमान तौभी एक क्षणमात्र भी मन कर सीता को न विसारता भया सीता सीता यह अलाप सदा होता भया, सीता के गुणोंकर मोहा है मन जिसको सर्वदिशा सीतामई देखताभया स्वप्न विधे सीताको इस भांति देख तर्वत की गुफा में पड़ी है पृथिवी की रज कर मंडित है और नेत्रों के अश्रुपात कर चौमासा कर रखा है महा शोक कर व्याप्त है इस भांति स्वप्न में अवलोकन करता भया सीताकार शब्द करता राम ऐसा चितवन करे है देखो सीता सुन्दर चेष्टा की धरण हारी दूर देशान्तर में तिष्ठेहै तौभी मेरे चित्तसे दूर न होय है वह साधुवी शीलवन्ती मेरेहित में सदा उद्यमी इसभांति सदाचितारवो करे और लक्षमण के उपदेशकर और सूत्रसिद्धांत के श्रवण कर कछु इक राम का शोक क्षीण भया
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