Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराण 1680
| केवलीको प्रणाम कर अन्तर बाहिरके परिग्रह तजे कृतांतवक्रथा सो सौम्यकबक्र होयगया सुंदरहै चष्टा जिमकी इसको श्रादि दे अनेक महाराजा वैरागी भए उपजी है जिनधर्मकी रुचि जिनके निथ । व्रत धारते भये और कइएक श्रावक व्रतको प्राप्तभए और कैयक सम्यक्त को धारते भए वह सभा हर्षित || होय रत्नत्रय प्रापणकर शोभित भई समस्त सुर असरनर सकल भूषण स्वामी को नमस्कारकर अपने || अपने स्थानक गये और कमलसमान नेत्र जिनके ऐसे श्रीराम सोसकलभूषणस्वामी को और समस्त। साधुवों को प्रणामकर महा विनयरूप सीता के समीपाए कैसी है सीता महानिर्मल तपकातेज धर जैसी। घृतकी आहुतिकर अग्निकी शिखा प्रज्वलित होय तैसी पापोंके भस्म करिवेको साक्षात अग्निरूप तिष्ठी। है आर्यिकावों के मध्य तिष्ठती देखी देदीप्यमान है किरणोंका समूह जिसके मानों अपूर्व चन्द्रकांति तारावों। के मध्य तिष्ठती है आर्यिकावों के व्रतधरे अत्यन्त निश्चलहै तजे हैं श्राभूषण जिसने तथापि श्री ही घृति। कीर्ति बुद्धि लमी लज्जा इनकी शिरोमणि सोहे है श्वेत वस्त्रको धरे कैसी सोहे है मानों मन्दपवन कर चलायमान हैं फैन कहिये झाग जिसके ऐसी पवित्र नदी ही है और मानों निर्मल शरद पूनोंकी चांदनी समान शोभा को धरे समस्त आर्यिकारूप कुमुदनियों. को प्रफुल्लित करणहारी भासे है महा वैराग्य को धरे । मूर्तिवंती जिनशासनकी देवताहीहै ऐसौ सो सीता को देख आश्चर्यको प्राप्तभया है मन जिसका ऐसे श्री राम कल्पवृक्ष समान क्षण एक निश्चल होय रहे स्थिर हैं नेत्र भ्रकुटी जिनकी जैसे शरदकी मेघमाला केसमीप कंचनगिरि सोहै तैसे श्रीराम अार्थिकावों के समीप भासतेभये, श्रीराम चित्त में चितवते हैं | यह साचात चन्द्रकिरण भव्य जन कुमुदनी को प्रफुलित करणहारी सोहे है बड़ा आश्चर्य है यह
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