Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पश्च । विमान विष उपजी विमान मणि कांचनादि महाद्रव्यों कर मण्डित विचित्रता घरे परम अद्भत सुमेरु JI के शिखर समान ऊंचहें वहां परम ईश्वरता कर सम्पन्न प्रतेन्द्र भया हजारों देवांगना तिनके नेत्रों का
आश्रय जैसा तारावों कर मण्डित चन्द्रमा सोहे तैसा सोहता भया. और भगवान की पूजा करता भया मध्यलोक में प्राय तीयों की यात्रा साधवों की सेवा करता भया और तीर्थकरोंके समोसरण में गणघरों के मुख से धर्मश्रवण करताभया, यह कथा सुनगौतमस्वामी से राजा श्रेणिकने पूछी हे प्रभो सीताका जीव सोलमें स्वर्ग प्रतेन्द्र भया उस समय वहां इन्द्र कौन था तव गौतमस्वामी ने कही उस समय वहां राजा। मध का जोव इन्द्र था। उसके निकट यह प्रतेन्द्र भयासोवह मधुका जीव नेमिनाथ स्वामी के समय अच्यु तेन्द्रपद से चय कर वासुदेव की रुक्मणी राणी ताके प्रद्युम्न, पुत्र भयो और उस का भाई कैटभ जांबुवतीके शंभु नाम पुत्र भया, तब श्रोणिक ने गौतमस्वार्मा से बेनती करी हे प्रभो मैं तुम्हारे वचन रूप अमृत पीवता पीवता तृप्त नहीं जैसे लोभी जीव धनसे तृप्त नहीं इसलिये मुझे मधुको और उसकेभाई कैटभका चरित्र कहो तब गणधर कहते भये । एक मगध नामो देश सर्व धान्य कर पूर्ण जहां चारों वर्ण हर्ष सेवसें धर्म अर्थकाममोक्ष के साधक अनेक पुरुष पाईयें और भगवान् के सुन्दर चैत्यालय और अनेकनगर ग्राम तिन कर वह देश शोभित जहां नदियों के तट गिरियों के शिखर बनमें ठोर ठौर साधुवोंके संघ विराजे हैं राजा नित्योदित राज्यकरे उस देशमें एक शालि नाम ग्रामनगरसारिखाशोभितवहां एकबाहण सोमदेव उसके स्त्री अग्निला पुत्र अग्निभूत वायुभूत सोवे दोनों भाई लौकिक शास्त्र में प्रवीण और पठन पाठन | दान प्रतिग्रह में निपुण और कुल के तथा विद्या के गर्व कर गर्वित मनमें ऐसा जाने, हमसे अधिक
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