Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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घराण
११००४
of का पानकर हिंसा का मार्ग विषवत् तजते भए समाधिमरणकर पहिले स्वर्गउत्कृष्ट देव भए वहां से चय कर। । अयोध्या में समुद्र सेठ उसके धारणी स्त्री उसकी कूक्षिमें उपजे नेत्रोंकोयानम्दकारीएक का नामपूर्णभद्र
दूजे का नामकांचनभद्र सोश्रावकके व्रत धार पहिले स्वर्गगए और ब्राह्मणके भवके इनके माता पिता पापके योग से नरक गए थे वे नरक से निकस चांडाल और कूकरी भए वे पूर्णभद्र और कांचनभद्र के उपदेश से | जिनधर्म का आराधन करते भए समाधिमरणकर सोमदेव द्विज का जीव चाण्डाल से नन्दीश्वर दीपका। अधिपति देव भया और अग्निलाब्राह्मणीका जीव कूकरी से अयोध्या केरोजाकी पुत्री होय उस देवके उप-1 देशसे विवाह का त्याग कर आर्यिका होय उत्तम गति गई वे दोनों परम्पराय मोक्ष पायेंगे और पूर्णभद्रकांचनभद्र का जीव प्रथम स्वर्ग से चयकर अयोध्या का राजा हेम राणी अमरावती उसके मकैटभ नामापुत्र जगत्प्रसिद्ध भए जिनको कोई जीत न सके महाप्रबल महारूपवान जिन्होंने यह समस्तपृथिवी बशकरी सव राजा तिनके अाधीन भए भीम नाम राजा गढके वलकर इनकी आज्ञा न माने जैसे चमरेन्द्र असुर कुमारों का इन्द्र नन्दनवन को पाय प्रफुल्लित होय है, तैसे वह अपने स्थानक के बल से प्रफुल्लित रहे और एक बीरसेन नाम राजा बटपुर का धनी मधुकैटभ का सेवक उसने मधुकैटभ को विनती पत्र लिखा हे प्रभो भीम रूप अग्नि ने मेरा देश रूप बन भस्म किया, तब मधु क्रोध कर बड़ी सेना से भीम ऊपर चढ़ा सो मार्ग में बटपुर जाय डेरी किए बीरसेन ने सन्मुख जाय अतिभक्ति कर मिहमानी करी उसके स्त्री चन्द्राभा चन्द्रमा समान है बदन जिसका सो वीरसेन मूर्खने उसके हाथ मधु का आरता कराया और उसहीके हाथ जिमाया चन्द्राभा ने पतिसे घनी ही कही जोअपने घर में सुन्दर वस्तु होय सो राजा को न ।
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