Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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प। कोई नहीं जिनधर्म से परांमुख रोग समान इन्द्रीयों के भोग तिन ही को भले जाने एक दिन स्वामी ।
नन्दीवर्धन अनेक मुनियों सहित बनमें प्राय विराजे बड़े. प्राचार्य्य अवधि ज्ञान कर समस्त मूर्तिक पदार्थों को जाने सो मुनियों का आगम सुन ग्राम के लोक सब दर्शन को आये थे और अग्निभूत वायु भूतने किसीसे पूछी जो यह लोक कहांजाय तब उसने कही नन्दिवर्धन मुनि आये हैं तिनके दर्शन जाय हैं तब मुनकर दोनों भाई कोधायमान भये जो हम बादकर साधुवोंको जीतेंगे तब इनको माता पिता ने मने किया जो तुम साधुवोंसे बाद न कगे तथापि इन्होंने न मानी बादको गये तब इनको श्राचार्य के निकट जाते देख एक सात्विक नामा मुनि अवधिज्ञानी इनको पूछते भये तुम कहां जावो हो तब इन्होंने कही तुम में श्रेष्ठ तुम्हारा गुरु है उनको बादकर जीतवे जायहें तब सात्विक मुनि ने कही हमसे चर्चा करो तब यह क्रोधकर मुनि के समीप बैठे और कही तुम क्या जानो हो तब मुनिने कही तुम कहाँ से आये तब वह क्रोधकर कहते भये यह तें कहां पूछी हम ग्राम में से आये हैं । कोई शास्त्रकी चर्चा कर तब मुनि कही यह तो हमा जाने हैं तुम शालिग्राम से पाये हो और तिहारे बापका नाम सामदेव माताका नाम अग्निला पोर तुम्हारे माम अग्विभूत तुम विप्रकुल हो सो यह तो प्रकटहै परन्तु हम तुम से यह पूछे हैं अनादिकालके भवन विषे भूमण करोहो सो इस जन्म विष कौन जन्म से प्राय हो तब इन्होंने कही यह जन्मान्तरकी बात हमको पछी सो और कोई जाने है तब मुनिने कही हम जाने हैं तुम सुनो पूर्वभव विष तुम दोनों भाई इस प्रामके बनमें परस्पर स्नेह के धारक स्याल थे | विरूप मुख और इसी ग्राम विषे एक बहुत दिनका बासी पामर नामा पितहड ब्राह्मण सो वह क्षेत्र
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