Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन के भाव अविवेक रूप होय, सो तू जिनमार्ग विषे प्रवरती संसारकी माया अनित्य जानी और परम ह, आनन्द रूप यह दशा जीवों को दुर्लभ है इसभांति दोनों भाई जानकीकी स्तुति कर लव अंकुश को
भागे घरे अनेक विद्याधर महीपालं तिन सहित अयोध्यामें प्रवेश करते भए जैस देवों सहित इंद्र अमरावती में प्रवेश करें और समस्त राणी नाना प्रकार के नाहनों पर चढ़ी परिवारसहित नगरमें प्रवेश करती भई सो रामको नगरमें प्रवेश करता देख मंदिर ऊपर बैठी स्त्री परस्पर बार्ता करे हैं यह श्री रामचन्द्र महा शूरवीर शुद्धहै अन्तःकरण जिनका महा विवेकी मढ़ लोकोंके अपवाद से ऐसी पतिव्रता नारी खोई तब कैयक कहती भई जे निर्मल कुलके जन्में शूरवीर क्षत्री हैं तिनकी यही रीति है किसी प्रकार कु को कलंक न लगावें लोकोंके संदेह दर करिवे निमित्त रामने उसको दिव्य दई वह निर्मल प्रात्मा दिव्य में सांची होय लोकोंके संदेह मेट जिन दीक्षा धारती भई और कोई कहैं हे सखि जानकी बिना राम कैसे दीखे हैं जैसे बिना चांदनी चांद और दीप्ति बिना सूर्य तब काई कहती भई यह आप ही ! महा कांति धारी हैं इनकी कांति पराधीन नहीं और कोई कहती भई सीता का वजचित्त है जो ऐसे । पुरुषोत्तम पति को छोड़ जिन दीक्षा धारी तब कोई कहती भई धन्य है सीता जो अनर्थ रूप गृहबास को तज आत्म कल्याण किया और कोई कहती भई ऐसे सुकुमार दोनों कुमार महा धीर लव कुश कैसे तजे गए स्त्रीका प्रेम पतिसे छूटे परन्तु अपने जाए पुत्रों से न छूटे तब कोई कहती मई ये दोनों
पुत्र परम प्रतापी हैं इनका मातो क्या करेगी इनका सहाई पुण्य ही है और सबही जीव अपने अपने । कर्म के प्राधीन हैं इस भांति नगर की नारी बचनालाप करें हैं जानकी की कथा कौनको मानन्द
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