Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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PM राजाने फोरे और राजा का जो सोवने का महिल वहां रात्रि को अग्नि लगाई सो राजा सदा सावधान पुराव ६६४/ थो और महिल में गोप सुरंग रखाई थी सो सुरंग के मार्ग होय दोनों पुत्र और स्त्री कोलेय राजा निकसा
सो काशी का धनी राजा कश्यप महान्यायवान् उग्रवंशी राजा रतिवर्धन का सेवक था उसके नगरको राजा गोप्य चला और सर्वगुप्त रतिवर्धनके सिंहासनपर बैठा सबको आज्ञाकारी किए और राजा कश्यप को भी पत्र लिख दूत पठाया कि तुमभी आय मुझे प्रणाम कर सेवा करो, तब कश्यपने कही हे दूत सर्व गुप्त स्वामीद्रोही है सोदुर्गति के दुःख भोगेगा, स्वामीद्रोही का नाम न लीजे मुख न देखिये सो सेवा कैसे कीजे उस ने राजा को दोनों पुत्र और स्त्री सहित जलाया सो स्वामी घात स्त्रीघात और बाल घात यह महादोष उस ने उपार्जे इसलिये ऐसे पापी का सेवन कैसे करीये जिस का मुख न देखना तो सर्व लोकों के देखते उस का सिर काट धनी का बैर लूगा, तब यह वचन कह दूत फेर दिया दूत ने जाय सर्वगुप्त को सर्व वृतांत कहा, सो अनेक राजावों कर युक्त महासेना सहित कश्यप ऊपर पाया सो आयकर कश्यप का देश घेरा, काशी के चौगिर्द सेना पड़ी तथापि कश्यप के सुलह की इच्छा नहीं युद्ध ही का निश्चय, और राजा रतिवर्धन रात्रि के विषे काशी के बनमें पाया और एक द्वार पाल तरुण कश्यप पर भेजा सो जाय कश्यपसे राजाके प्रावनेका बृतांत कहताषयासोकश्यपअति प्रसन्न भया और कहां महाराज कहां महाराज ऐसे वचन बारम्बार कहता भया, तब द्वारपालने कहा, महाराज बन में तिष्ठे हैं तब यह धर्मी स्वामी भक्त अतिहर्षित होय परिवार सहित राजापे गया और उसकी भारतीकरी प्रोस्पांवपकर जय जयकार करता नगरमें लाया नगर उछालाऔर यह ध्वनि नगरमें विस्तरी
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