Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गए, वहां के राजा नाना प्रकारकी भेट ले आए मिले झषकुंतल नामादेश, तथा सालायं, नंदि नंदन पन पुराण |
स्यघल शलभ अनल भीम, भूतरव, इत्यादि अनेक देशाधिपतियों को वशकर सिंधु नदी के पारगये i६२१० समुद्र के तट के राजा अनेकों को नमाये अनेक नगर अनेक पेट अनेक अटव अनेकदेश वश कीये भीरु
देश यवन कच्छ चाख बजट नट सक्र केरल नेपाल मालव, अरल सर्वरत्रिशिर पार शैलगोशोल कुसीनर सरपार कमनत विधि शरसेन बाहीक उलक कोशल गांधार सौवीर अंध्र, काल. कलिंग इत्यादि अनेक देवशकीये कैसे हैं देश जिनमें नाना प्रकारकी भाषा और वस्त्रोंका भिन्न भिन्न पहराव और जुदे जुदे गुण नानाप्रकार के रत्न अनेक जाति के वृक्ष जिनमें और प्रकार स्वर्ण श्रादि धनके भरे कैयक दशां के राजाप्रताप ही से आय मिले कैयक युद्ध में जीत क्शकीये, कैयक भाग गए बड़े बड़े राजा देशपति अति अनुरागी होय लवणांकुश के आज्ञाकारी होते भए इनकी प्राज्ञा प्रमाण पृथिवी में विचरे व दोनों भाई पुरुषोत्तम पृथिवी को जीत हजारां राजावों के शिरोमणि होते भए सबों को वशकर लार लीए नानाप्रकार की सुन्दर कथा करते सवका मन हरते पुण्डरीकपुर को उद्यमीभए वजंघ लारही है अतिहर्षकेभरेअनेकराजावोंकी अनेकप्रकारभेटवाई सोमहाविभतिकोलीयेअतिसेनाकर मंडितपुण्डरीकपुरके
समीप पाए सीता सतखणे महिल चढ़ा देखे है राजलोक की अनेकराणी समीप हैं और उत्तम सिंहासन | पर तिष्ठे हैं दूर से अति सेनाकी रजके पटल उठे देख सखीजनको पूछतीभई यह दिशामें रजका उड़ाव | कैसा है तब तिन्होंने कही हे देवि सेनाकी रज है जैसे जलमें मकर किलोल करें तैसे सेनाविखे अश्व । | उछलतेत्रांवे हैं हे स्वामिनियेदोनोंकुमार पृथिवी वशकर पाए इसभांति सखीजन कहे हैं और वधाई देन
For Private and Personal Use Only