Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
६३३
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धनुष तोडा तब राम हंसकर और धनुष लेयबेको उद्यमी भया । इतने में लवने रामका रथ तोडा तब राम और रथ चढ़ प्रचंड है पराक्रम जिसका क्रोध कर भृकुटी चढ़ाय ग्रीष्मकं सूर्य समान तेजस्वी जैसे चम रेंद्र पर इंद्र जाय तैसे गया तब जानकी का नन्दन लव रणकी पाहुनगति करनेको रामके सन्मुख आया रामके और लवके परस्पर महायुद्ध भया । उसने उसके शस्त्र के उसने उसके जैसा युद्ध राम और लवका भया तैसाही अंकुश और लक्षमणका भया इस भांति परस्पर दोनों युगल लडे तब योधा भी परस्पर लड़ें घोड़ों के समूह रणरूप समुद्रकी तरंग समान उच्छलते भये कोई एक योधा प्रतिपक्षीको टूटे खतर देख दयाकर मौन गह रहा और कई एक योधा मने करते करते पर सेना में पैसो स्वामी . का नाम उचारते परचक्रसे लड़ते भये कई एक महाभट माते हाथियों से भिड़ते भये केई एक हाथियों के अंतरूप सेजपर र निद्रा सुखसे लेते भये किसी एक महाभटका तुरंग काम आया सो पियादा लड़ने लगा किसी शस्त्र टूट गये तोभी पीछे न होता भया हाथोंसे मुष्टि प्रहार करता भया और कोई एक सामन्त वा वाहने चुक गया उसे प्रतिपक्षी कहताभया फिर चलाय सो लज्जाकर न चलावता और कोई एक निर्भयचित्त प्रति पचीको शस्त्र रहित देख श्रापभी शस्त्र तज भुजावों से युद्ध कराया वे योधा बडे दातारण संग्राम विषेप्राण देते भए परंतु पीठ न देतेभये जहां रुधिरका कीच ही रहा है सो रथोंके पहिये डूब गये हैं सारथी शीघ्रही नहीं चला सके हैं। परस्पर शस्त्रों के संपात कम पड रही है और हाथियों की मूंड के छांटे उछले हैं। और सामन्तों ने हाथियों के कुम्भ -स्थान बिहारे हैं सामन्तों के उरस्थल विहारे हैं हाथी काम प्राय गये हैं तिन कर मार्ग रुक रहा है
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