Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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18३७०
जानकी क्या करती सब दुखों में घरसे काढ़ने का बड़ा दुःख है सो तुम्हारी माता महा गुणवन्ती व्रत. वन्ती पतिव्रता में वनमें तजी और तुमसे पुत्र गर्भ में सो में यह काम बहुत बिना समझे कीयो और जो कदाचित् तुम्हारा युद्ध में अन्यथाभाव होता तो में निश्चय से जान हूंशोक से विहल जानकी न जीवती इस भान्ति राम ने विलाप कीया, फिर कुमार विनय कर लक्ष्मण को प्रणाम करते भये लक्षमण सीता के शोक से विहल प्रांस डारता. स्नेह का भरा दोनों कुमारों को उर से लगावता भया।शत्रुघ्न आदि यह बृतान्त सुन वहां आये कुमार यथायोग्य विनय करते भये ये उरसों लगाय मिले। परस्पर अतिप्रीति उपजी दोनों सेना के लोक अतिहित कर परस्पर मिले क्योंकि जब स्वामी स्नेह होय तब सेवकों के भी होय सीता पुत्रोंका महात्म्य देख अति हर्पित होय विमान के मार्ग होय पीछे पुण्डरीकपुरमें गई और भामंडल विमान से उतर स्नेह का भरा आंसू डारता भानजों से मिला, अतिहर्षित भया और प्रीतिका भरा हन. मान उरसे लगाय मिला और बारम्बार कहतो भया भली भई भली भई, और विभीषण सुग्रीव विराधित सव ही कुमारों से मिले, परस्पर हित संभाषण भया भूमिगोचरी विद्याधर सब ही मिले और देवोंका प्रा. गम भया सबों को अानन्द उपजा रौम पुत्रों को पाय कर अति आनन्द को प्राप्त भये, सकल पृथिवी के राज्य से पुत्रों का लाभ अधिक मानते भये. जोराम के हर्ष भया सो कहिवे में न आवे और विद्याधरी
आकाश में आनन्द से नृत्य करती भई और भूमिगोचरीयों की स्त्री पृथिवी में नृत्य करती भई और लक्ष्मण अापको कृतार्थमानता भया मानों सब लोक जीता इर्षसे फूलगये हैं लोचन जिसके और राम मन मनमें जानता भया में सगर चक्रवर्ती समान हूं और कुमार दोनों भीम और भगीरथ समान हे राम बज्रजंघ से ।
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