Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥६५७||
पद्म । एक निमिषमात्र भी नरकमें विश्रामनहीं आयु पर्यंत तिलमात्र अाहारनहीं और बून्दमात्र जलपान नहीं पारण। केवल मारही का आहार है इसलिए यह दुस्सह दुःख अधर्मके फलजान अधर्मको तजो वे अधर्म मधुमांसा
दिक अभक्ष्य भक्षण अन्यायवचन दुराचार रात्रिश्राहार बेश्या सेवन परदारागमन स्वामिद्रोह मित्रद्रोह विश्वास घात कृतघ्नता लंपटता ग्रामदाह बनदाह परधन हरण अमार्ग सेवन परनिंदा परद्रोह प्रासा घात बहु प्रारम्भ बहुपरिग्रह निर्दयता खोटीलेश्या रौद्रध्यान मृपावाद कृपणता कठोरता दुर्जनता मायाचार निर्माल्य का अंगीकार माता पिता गुरोंकी अवज्ञा बालवृद्ध स्त्री दीन अनाथों का पीड़न इत्यादि दुष्टकर्म नरकके कारण हैं वे तज शांतभाव धर जिनशासन को सेवो जिसकर कल्यामा होय जीव छैकायके हैं पृथिवी काय अप(जल)काय तेजः (अग्नि)काय बायुकाय बनस्पतिकाय त्रसकाय तिनकी दयापालो और जीव पुद्गल धर्म अधर्म आकाश काल यह छै द्रव्य हैं और सात तत्व नव पदार्थ पंचास्ति कायतिनकी श्रद्धा करो और चतुर्दश गुणस्थानचतर्दश मार्गका स्वरूप और सत्रभंगी बाण का स्वरूप भलीभांति केवली की श्राज्ञाप्रमाण उरमें धारो,स्यात्अस्ति । स्यातनास्ति स्यात्अस्तिनास्ति ।स्यादवक्त व्य स्यातअस्तिप्रवक्तव्य । स्यातनास्ति वक्तव्य । स्यातअस्तिनास्ति श्रवक्तव्य।ये सप्तभंग कहे और प्रमाण कहिये वस्तुका सांग कथन और नय कहिये बस्तुका एक अंग कथन और निक्षेप कहियेनाम स्थापना द्रव्य भाव ये चार और जीवों में एकेद्री के दोय भेद सूक्ष्म बादर और पंचेन्द्री केदो भेद सैनी असैनी और वे इन्द्री तेइन्द्री चौइन्द्री ये सात भेद जीवोंके हैं से पर्याप्त अपर्याप्त कर चौदह भेद जीव समास होय हैं और जीवके दो भेद एक संसारी एक सिद्ध जिसमें संसारीके दो भेद एक भव्य दूसरा अभव्य
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