Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पनक्षत्र म एक नगर वहां नयदत्त नामा वणिक अल्प धनका धनी उसकी सुनंदा स्त्री उसके पत्त नामा 1. 5 पुत्र सो रामका जीव और दूजा पुत्र वसुदत्त सो लक्षमणका जीव और एक यज्ञवलि नामा विप्र वसु। दत्तका मित्र सो तेरा जीव और उसही नगरमें एक और वणिक सागरदत्त जिसके स्त्री रत्नप्रभा पुत्री गुणवती
सो सीताका जीव और गुणवती का छोटा भाई जिसका नाम गुणवान सो भामंडल का जीव और गुण-1 वती रूप यौवन कला कांति लावण्यताकर मंडित सो पिता अभिप्राय जान धनदत्त से बहिनकी सगाई गुणवानने करी और उमही नगरमें एकम महा धनवान बणिक श्रीकांत सो खणकाजीव जोनिरन्तरगगवतीके, परिणवे की अभिलाषारोखे और गणवतीके रूपकर हरा गया है चित्त जिसका सो गुणवती का भाई लोभी धनदत्तको अल्पधनवंत जान श्रीकांतको महाधनवंत देख परणायवेको उद्यमीभया, सो यह वृत्तांत यज्ञवलि ब्राह्मणने वसुदत्तको कहा तेरेबड़े भाईकी मांग कन्याका बड़ाभाई, श्रीकांतको धनवान जान परणाया चाहे है तब वसुदत्त यह समाचार सुन श्रीकांत के माखेि को उद्यमी भया खड्ग पैनाय अंधेरी रात्री में श्याम वस्त्र पहिर शब्द रहित धीरा धीरा पग धरता जाय श्रीकांत के घर में गया सो वह असावधान बैठा था सो खड़ग से मारा तब पड़ते पड़ते श्रीकांत ने भी वसुदत्त को खड़ग से मारा सो दोनों मरे सो विंध्याचल की बनी में हिरण भए और नगर के दुर्जन लोक थे तिन्हों ने गुणवती धनदत्त को न परणायवे दीनी कि इस के भाई ने अपराध कीया, दुर्जन लोक विना अपराध कोपकरें सो यह तो एक बहाना पाया तब धनदत्त अपने भाई का मरण और अपना अपमान तथा मांग का अलाभ जान महादुखी होय घर से निकस विदेश गमनकरताभया और वह कन्या धनदत्तकी अप्राप्तिकर अतिदुखी भई और भी।
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