Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
पूरा ग
देवभया वहां पुण्य रूप बेल के सुख रूप फल महा मनाग्य भोगे फिर वहां से चयकर सुमेरु पर्वत के ७६ पूर्व दिशा की ओर विदेह वहां क्षेमपुरी नगरी राजा विपुल बाहन राणी पद्मावती तन के श्री चन्द्र नामा पुत्र भया वहां स्वग समान सुख भोगे तिन के पुण्य के प्रभाव से दिन दिन राजा की वृद्धि भई अटूट भंडार भया समुद्रांत पृथिवी एक ग्रामकी न्यांई वश करी और जिसके स्त्री इन्द्राणी समान सो इन्द्र कैसे सुख भोगे हजारों वर्ष सुख से राज्य किया एक दिन महा संघ सहित तीन गुप्ति के धारक समाधि गुप्ति योगीश्वर नगर के बाहर चाय विराजे तिन को उद्यान में चाय जान नगर के लोक बन्दनाको चले सो महा स्तुति करते वादित्र बजावते हर्ष से जाय हैं, श्री चन्द्र समीप के लोकों से पूछता भया यह हर्षका नाद जैसा समुद्र गाजे तैसा होय है सो कौन कारण है. तब मन्त्रियोंने किंकर दौड़ाये निश्चय कियाजो मुनिया हैं तिनके दर्शनको लोकजाय हैं, यह समाचार राजासुनकर फूलेकमल समान भए हैं नेत्र जिस के और शरीर में हर्ष से रोमांच होय आए समस्त राज लोक और परिवार सहित मुनि के दर्शन को गया प्रसन्न है मुख जिन का ऐसे मुनिराज तिन को राजा देख प्रणाम कर महा विनय संयुक्त पृथिवी में बैठा भव्य जीव रूप कमल तिनके प्रफुल्लित करने को सूर्य समान ऋषिनाथ तिन के दर्शन से राजा को यति धर्म स्नेह उपजा, वे महा तपोधन धर्मशास्त्र के वेसा परम गंभीर लोकोंको तत्वज्ञान का उपदेश देते भए यतिका धर्म और श्रावक का धर्म संसारसमुद्रका तारण हारा अनेक भेद संयुक्त कहा और प्रथमानुयोग करणानुयोग चरणानुयोग द्रव्यानुयोग का स्वरूप कहा प्रथमानुयोग कहिये उत्तम पुरुषांका कथन और करण नुयोग कहिये तीनलोकका कथन चरणानुयोग कहिये मुनिश्रावका धर्म और द्रव्यानुयोग
For Private and Personal Use Only