Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म । गुगावती का भाई गुणवान् सो भामण्डल भया श्रीराम का मित्र जनकराजा की राणी विदेहाके गभ I में युगुल वालक भये भामण्डल भाई सीता बाहिन दोनों महा मनोहर और यज्ञबलि ब्राह्मगा का जीव विभीषण भया और बैल्का जीव जो नमोकार मंत्र के प्रभाव से स्वर्ग गति नर गतिके मुख भोंगे यह सुग्रीव कपिध्वज भया भामण्डल मुग्रीव और तूं पूर्वभव की प्रीति कर तथा पुण्य के प्रभाव कर मा पुण्याधिकारी श्रीराम, उसके अनुरागी भए यह कथा सुन बिभीषण बालि के भव पूछता भयाभोर , केवली कहे हे हे विभीषण तू सुन राग द्वेषादि दुःखों के समूह कर भरा यह संसार सागर चद्धति भई उस विषे वृन्दावन में एक कालेरा मृग सो साधु स्वाध्याय करते थे तिनका शब्द अंतकाल में सुनकर ऐमेवत चत्र विष दित स्थान नामा मगर वहां विहित नामा मनुष्य .म्यकदृष्टि मुंदर चेष्ट का धारक उसकी स्त्री शिवमती उसके मेघवत्त नामा पुत्रभया सो जिन पूजा में उद्यमी भगवान का भक्त अणुवतका धारक समाधि मरणकर दूजे स्वर्ग देव भया वहां से चयकर जम्बूद्वीप विषे पूर्व विदेह वहां विजियावतापुरी उसके समीप पड़ा उत्साह का भरा एक मतकोकिला नामां प्राम उसका स्वामी काति,शोक उसकी स्त्री रत्नागिनी है स्वप्रम नामा पत्र भयां महासुन्दर जिसको शुभशाचार भावे सो जिनधर्म में निपुण संयत नामा मुनि होय हजारों वर्ष विधि पूर्वक बहुत भांतिके महाप किये निर्मले है मन जिसका सो तपक प्रभावकर अनेक ऋद्धि उपजी तथापि प्रति निगर्व संयोग संवन्धे में ममता को तज उपशम श्रेणी धार शुक्ल ध्यान के पहिले पाए के प्रभाव से सर्वार्थ सिद्ध । गया सौ तेतील सागर.अहिमिन्द्र पदके सुख- भोग सजा सूर्यरज उसके बालि नामा पुत्र भयाविया
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