Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराव
पञ्च धरों का अधिपति किहकंधपुरका धनी जिसका भाई सुग्रीव महा गुणवान सो जब रावण चढ़ पाया।
तब जीवदया के अर्थ बालीने युद्ध न किया सुग्रीव को राज्य देय दिगंबर भया सो जब कैलाश में तिष्ठे था और रावण पाय निकसा क्रोध कर कैलाश के उठायब को उद्यमी भया सो बाली मुनि चैत्यालयों की भक्तिसे ढीलासो अंगुष्ठ दबाया सो रावण दवने लगा तब राणीने साधुकी स्तुति कर अभयदान दिवाया रावण अपने स्थानकगयाऔर बाली महामुनिके गुरूकेनिकट प्रायश्चितनामा तप लेय दोष निराकरण कर चायक श्रेणी चढ़कर्म दग्ध किये लोकके शिखरसिद्धिचेत्र हैं वहांगए जीव का निज स्वभाव प्राप्त भया और वसुदत्तके और श्रीकान्तके गुणवती के कारण महाबैर उपजा था सो अनेक जन्मों में दोनों परस्पर लड लड मरे और गणवती से तथा वेदवती से रावणके जीव कै अभिलाष उपजी थी उस कारण कर रावण ने सीता हरी और वेदवती का पिता श्रीभूति सम्यक दृष्टि उत्तम ब्राह्मण सो वेदवती के अर्थ शत्रु ने हता सो स्वर्ग जाय वहां से चयकर प्रतिष्ठित नाम नगर विषे पुनर्वसु नाम विद्याधर भया सो निदान सहित तपकर तीजे स्वर्ग जाय रामका लघु भ्राता महा स्नेह वन्त लक्ष्मण भया, और पूर्वले बेर के योग से रावण को मारा और वेदवती से शंभुने विपर्यय करी इसलिये सीता रावणके नाश का । कारण भई जो जिसको हते सो उसकर हता जाय तीन खण्ड की लक्षमी सोई भई रोत्रि उसका चंद्रमा रावण उसे हप्ता लक्ष्मण सागरान्त पृथिवी का अधिपति भया रावण सो शूर वीर पराक्रमी इस भांति । मारा जाय यह कमों का दोष है दुर्बल से सबल होय सवल से दुर्बल होय घातक है सो हता जाय और । ॥ इता होय सो घातक होय नाय संसार के जीवों की यही गति है कर्म की चेष्टा कर कभी स्वर्गके सुख ।
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