Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
घराण 18८७
कीया कि यह झूठा अपवाद दूरहोय तो आहार को उतरना तब नगर देवताने बेदवती के मुखकर समस्त ग्राम के लोकों को कहाई कि मैं झूठा अपवाद किया यह बहिन भाई हैं और मुनिके निकट जाय वेदवतीने क्षमा कराई । कि हे प्रभो मैं पापनी ने मिथ्या वचनकहे सो क्षमाकरो इसभांति मुनिकी निंदाकर सीताका झा अपवाद भया, और मुनिसे क्षमा कराई उसकर अपवाद दूरभयो इसलिये जेजिनमार्गी हैं वे कभी भी परनिंदा न करें किसीमें सांचाभी दोषहै तौभी ज्ञानी न कहें और कोऊ कहताहोय इसे मनेकरें सर्वथा प्रकार पराया दोष ढाकें जे कोई पर निंदा करें हैं सो अनन्त काल संसार बनमें दुख भोगबें हैं सम्यक् दर्शनरूप जारत्न उसका बड़ागुण यही है जोपराया अपगुण सर्वथा ढांके जो सांचा भी दोष परायो कहें सो अपराधी हैं और जो अज्ञानी से मत्सरभाव से पराया भठा दोष प्रकाशे उस समान और पापी नहीं अपने दोष गुरू के निकट प्रकाशने और पगये दोष सर्वथा ढांकने जो पराई निंदा करे सो जिनमार्गसे पगंमुख हैं यह केवली के परम अद्भुत वचन सुनकर सुर असुर नर सब ही आनन्द को प्राप्त भए वैर भाव के दोष सुन सब सभा के लोग महादुख के भयकर कंपायमान भए मुनि तौ सर्व जीवों से निकर हैं अधिक शुद्ध भाव धारते भए और चतुनिकाय के सबही देव क्षमा को प्राप्त होय बैरभाव तजते भए
और अनेक राजा प्रतिबुद्ध होय शांति भाव धार गर्व का भार तज मुनि और श्रीवक भए औरजे मिथ्या वादी थे वहभी सम्यक्त को प्राप्त भए सबही कर्मों की विचित्रता जान निश्वास नाषते भए धिक्कार इस जगत्की माया को इसभांति सब ही कहते भए और हाथ जोड़ सीस निवाय केवली को प्रसाम कर सुर असुर मनुष्य विभीषण की प्रशंसा करते भए कि तुम्हार प्राश्रय से हमने केवली के मुख उत्तम पुरुषों के
For Private and Personal Use Only