Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
करें अनेक यत्न करें तौभी न पावें, अनादि काल की लगी जो अविद्यारूप स्री उनका विरह MEEM अभव्यों के न होय सदा अविद्या को लिये भव बनमें शयन करें और मुक्ति रूप स्त्री के मिलाप की
बांछा में तत्पर जे भव्य बे कैयक दिन संसार में रहे हैं सो संसार में रोजी नहीं तपमें तिष्ठते मोच ही के अभिलाषी हैं जिनमें सिद्ध होने की शक्ति नहीं उन्हें अभव्य कहिये और जे सिद्ध होनहार हैं। । उन्हें भव्य कहिये, केवलीकहे हैं हे रघुनन्दनजिनशासन बिना और कोई मोक्षका उपाय नहीं विना सम्यक्त । कर्मों का क्षय न होय अज्ञानीजीव कोटिभवमें जे कर्म न क्षिपायसके सो ज्ञानीतीन गुप्तिको घरेएकमहूर्त में । क्षिपावे सिद्ध भगवान परमात्माप्रसिद्धहें सर्वजगत्उनकोजानेहै किवेभगवान्हें केवलीविनाउनकोकोईप्रत्यक्ष | देख जानन सके, केवलज्ञानी ही सिद्धों को देखें जाने हैं मिथ्यात्व का मार्ग संसार का कारण इसजीवने । अनंत भवमें धारा तुम निकट भव्यहो परमार्थकी प्राप्तिकेअजिनशासनकी अखंड श्रद्धाधारो हे श्रेणिक यह वचन सकलभूषणकेवलीके सुन श्रीरामचन्द्र प्रणामकर कहतेभए हे नाथ इस संसार समुद्र से मुझे तारो | हे भगवान् यह प्राणी कौन उपाय से संसार के वाससे छूटे है तब केवली भगवान कहतेभए हे राम सम्यक् । दर्शन ज्ञान चारित्र मोक्ष का उपाय है जिनशासन में यह कहा है तत्व का जो श्रधान उसे सम्यक्दर्शन । कहिये तत्वअनंतगुणपर्यायरूप है दोयभेदहेंएकचेतनदूसराअचेतन है सोजीव चेतन है और सर्वअचेतन । है और दर्शन दोय प्रकारसे उपजे हैएक निसर्ग एक अधिगम जोस्वतःस्वभावउपजे सोनिसर्गऔर गुरुके। | उपदेशसे उपजसो अधिगम सम्यक्दृष्टि जीव जिनधर्म विषेरतहें सम्यक्तके अतीचार पांचहें शंका कहिये । | जिनधर्म विषे संदेह और कांक्षा कहिये भोगों की अभिलाषा और विचिकित्सा कहिये महामुनि को ||
For Private and Personal Use Only