Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
| का है स्पर्श जिनकै तिनमें प्हद और प्हदोमें कमल तिनमें षट कुमारिकादेवि हैं श्रीही बुद्धिकीर्तिधति घराण | लक्ष्मी और जंबद्धोप में सात क्षेत्र में भरत हैमवत हरि विदेह रम्यक हैरण्यवत ऐरावत और षटकुला ।६६१
चलोंसेगंगादिक चौदह नदीनिकी हैं आदिकेसे तीन और अंतकेसेतीन औरमध्यकेचारोंसेदोयदोयय ह चौदह हैं और दूजादीपधातुकी खण्ड सोलवणसमुद्र से दूना है उसमें दोय सुमेरुपर्वत हैं और वारह कुलाचल
और चौदह क्षेत्र यहां एक भरत वहां दोय यहां एक हिमवान वहां दोय इसभांति सर्व दुगणे जानने और नीजाद्वीप पुष्कर उसके अर्ध भाग में मानक्षेत्र पर्वत है सो अढाई द्वीप ही में मनुष्य पाईये हैं आगे नहीं अाधे पुष्कर में दोय मेरु वारां कुलोचल चौदहक्षेत्र धातु की खंडदीप समान जहां जानने अठाई दीप में पांच सुमेरु तीस कुलाचल पांच भरत पांच ऐरावत पांच महाविदेह तिन में एकसौ साठ विजय समस्त कर्म भूमि के क्षेत्र एक सौ सत्तर एक एक क्षेत्रमें छह छह खण्ड तिन में पांच पांच ग्लेक्षखण्ड एक एक आये खण्ड आर्य खंड में धर्म की प्रवृति विदेहछेत्र और भरत ऐरावत इन में कर्म भमि तिन में विदेह तो शाश्वती कर्मभूमि और भरत ऐरावत में अठारा कोडा कोडी सागर भोग भमि दोय कोड़ा कोड़ी। सागर कम्मभूमि और देवकुरु उत्तरकुरु यह शाश्वती उत्कृष्ट भोग भमि तिन में तीन तीन पल्य की
आयु और तीन तीन कोस की काय और तीन तीन दिन पीछे अल्प आहार सो पांचमेरु सम्बन्धी पांच देव कुरु पांच उत्तर कुरु और हरि और रम्यक यह मध्य भोग भूमि तिन में दोय पल्यकी आयु
और दोय कोस की काय दोय दिन गए श्राहार इसभांति पांच मेरु संबन्धी पांच हरि पांच रम्यक यह दश मध्य भोग भूमि और हैमवत हैरण्यवत यह जघन्य भोग भूमि तिन में एक पत्य की आयु
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