Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पागा
॥६३८
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अतिप्रीत करताभया जो तुममेरे भामल समान हो अयोध्यापुरी तो पहिलेही स्वर्गपुरी समान थी तो | फिर कुमारों के प्रायवे कर अति शोभायमान भई जैसे सुन्दर स्त्री सहजही शोभायमानहोय और श्रृंगार
कर अति शोभाको पावे, श्रीराम लक्षमणसहित और दोनों पुत्रोंसहित सूर्यकी ज्योतिसमान जो पुष्पक विमान उसमें विराजे सूर्यसमानहै ज्योति जिनकी रामलक्षमण और दोनों कुमार अद्भुत आभूषण पहिरे सो कैसी शोभा बनी है मानों सुमेरुके शिखरपर महामेघ विजुरी के चमत्कार सहित तिष्ठा है।
भावार्थ-विमान तो मुमेरु का शिखर भया और लक्षमण महामेघका स्वरूपभया और गम तथा राम के पुत्र विद्युतसमान भय सोये चढ़कर नगरके वाह्य उद्यान विष जिनमंदिरहैं तिनके दर्शनको चले सो नगरके कोटपर ठौर २ ध्वजा चढी हैं ।तिनको देखते धीरे २ जायहैं लार अनेक राजा केई हाथियों पर चढ़े केई घोड़ों पर केई रों पर चढ़े जायहें और पियादों के समूह जाय हैं धनुष बाण इत्यादि । अनेक आयुध और ध्वजा छत्रों कर सूर्यकी किरण नजर नहीं पडे हैं और स्त्रियों के समूह झरोखों । में बैठी देखे हैं । लव अंकुशके देखबेका सबोंके बहुत कौतूहल है नेत्ररूप अंजलियोंकर लवणांकुश
के सुन्दरता रूप अमृतका पान करे हैं सो तृप्त नहीं होय एकाग्रचित्त भई इनको देखे हैं और नगर में नर नारियोंकी ऐसी भीड़भई किसीके हार कुंडलकी गग्य नहीं और नारीजन परस्पर बार्ता करे हैं कोई कहे है हे मातः टुक मुख इधर कर मुझे कुमारोंके देखिबे का कौतुक है । हे अखण्ड कौतुके तूने तो धनी बार लग देखे अब हमें देखने देवो अपनासिरनीचा करज्यों हमको दीखे कहां ऊंचा सिरकर रही है कोई कहे है हे सखि तेरे सिरके केश बिखर रहे हैं सोनीके समार और कोई कहे है हेक्षिप्तमान
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