Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुरा
॥३६॥
बारबार पीछापाया फिर अंकुशने धनुष हाथमें गहा तब अंकुशको महा तेजरूप देख लघमणके पक्षक सन सामन्त पाश्चर्यको प्राप्तभये तिनको यह बुद्धि उपजी यह महापराक्रमी अर्धचक्री उपजालक्ष्मण ने कोटि शिला उठाई और मुनिके वचन जिनशासनका कथन और भांति कैसेहोस और लशाण भी मनमें जानताभया कि ये बलभद्र नारायण उपजे श्राप अति लज्जावान होय युद्धकी क्रियागे शिथिलभयो - अथानन्तर लक्षमणको शिथिल देख सिद्धार्थ नारद के कहे से लक्षमणके समीप आय कहता भया वासुदेव तुमहीहो जिनशासन के वचन सुमेरुसे अति निश्चल हैं यह कुमार जानकी के पुत्र हैं गर्भ में थे तब जानकी को बन में तजी यह तुम्हारे अंग हैं इसलिये इनपर चक्नादिक शस्त्र न चलें तब लक्षमण ने दोनों कुमारोंका वृत्तान्त सुन हर्षित होय हाथसे हथियार डोर दिये वपतर दूर किया सीता के दुःख कर अश्रुपात डारनेलगा और नेत्र घूमने लगे रामशस्त्र डार वक्तर उतार मोह कर मूर्छित भए, चन्दन से छांट सचेत किये तब स्नेहके भरे पुत्रोंके समीप चले पुत्र रथसे उतर हाथ जोड़ सीस निवीय पिताके पायने पड़े श्रीराम रह कर द्रवी भूत भया है मन जिसका पुत्रोंको उरसे सगाय विलाप करतेभये. प्रांसुवों करन मेघ कासा दिन किया राम कहे हैं हाय पुत्रहो मेंमंद बुद्धि गर्भ में तिष्ठते तुमको सीता सहित भयंकर बनमें तजे. तुम्हारी माता निर्दोष हाय पुत्रहो में कोई विस्तीर्ण पुण्य कर तुम सारिखे पुत्र पाए सो उदर में तिष्ठते तुम भयंकर वन विषे कष्टको प्राप्त भए हाय वत्सहो जो यह बजजंघ बन में न श्रावता तो तुम्हारा मुखरूप चन्द्रमा में कैसे देखता, हाय बालक हो इन अमोघ दिव्यास्त्रोंकर तुम न हते गये सो मेरे पुण्य के उदयकर देवोंने सहाय करी हाय मेरे अंगज हो मे रे बाणोंकर बींधे तुम रणक्षेत्र में पड़ते तो न जनू ।
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