Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पक्षमा प्रार्गका मई परन्तु धनी प प भाव जो इसने झूठा दाप लगाया सो मर कर विद्युद्रक नामा राक्षसी । SHUN मई मो पूर्व वैर थकी सकलभूषण स्वामी अाहारको जाय तब यह अंतराय करे कभी माने हाथियों के
बन्धन तुड़ाय देय हाथी ग्राम में उपद्रव करें इनको अंतराय होय कमी यह अाहार को जांय लव अग्नि लगाय देय कभी यह रजोवृष्टि करे इत्यादि नाना प्रकार के अन्तराय करे कभी अश्व का कभी बृषभ का रूपकर इनके सन्मुख अावे कभी मार्ग में कांटे बखेरे इसभान्ति यह पापिनी कुचेष्टा करे एक दिन स्वामी कायोत्सर्ग धर तिष्ठे थे और इसने शोर किया यह चोर है सो इसका शोर सुनकर दुष्टों ने पकड़े अपमान किया फिर उत्तमपुरुषों ने छुड़ायदिए एकदिन यह अाहार लेकर जातेथे सो पापिनी राक्षसी ने काह स्त्री का हार लेकर इनके गले में डार दिया और शोर किया कि यह चोर है हार लिये जायहै तब लोग आय पहुंचे इनको पीडा करी हार लिया भले पुरुषों ने छुड़ायदिये इसभांति यह क्रूरचित्त दयारहित पूर्व बैर विरोध से मुनि को उपद्रव करे. गई रात्रि को प्रतिमा योगधर महेंद्रोदय नामा उद्यान में विराजे थे सो राक्षसी ने रौद्र उपसर्ग किया वितर दिखाये और हस्ती सिंह व्याघ सर्प दिखाए और रूप गण मंडित नाना प्रकार की नारी दिखाई भांति भांतिके उपद्रव किए परन्तु मुनि का मन न डिगा तब केवलज्ञान उपजा सो केवल की महिमा कर दर्शन को इन्द्रादिक देव कल्पवासी भवनवासी व्यंतर जोतिशी कैयक हाथियों पर चढ़े कैयक सिंहोंपरचढे कैयक ऊंट खच्चर मीढा वघेरा अष्टापद इन पर चढ़े
कैयक पक्षियों पर चढ़े कैयक विमान बैठे कैयक रथों चढ़े कैयक पालकीचढे इत्यादि मनोहर बाहनों | पर चढ़े पाए, देवों की असवारी के तिर्यंच नहीं देवों ही की माया है देव ही विक्रीयाकर तियच का |
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