Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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CITTE
११३२॥
पिन || महा बलवन्त ग्यारहहजार राजाउत्तमतेजके धारक युद्ध के उद्यमीभए दोनों सेनावों का संघट्ट भयो दोनों
सेनावों के संगम में देवों को असुरों को आश्चर्य उपजे ऐसा महा भयंकर शब्द भया जैसा प्रलयकाल का समुद्रगाजे परस्पर यह शब्द होते भए क्या देख रहा है, प्रथम प्रहार क्यों नकरे, मेरा मन तोपर प्रथम प्रहार करिवे पर नहीं इसलिये तू ही प्रथम प्रहारकर और कोई कहे है एक डिग आगे होवो जूशस्त्रचलाऊं
कोई अत्यन्त समीप होय गये तब कहे हैं खञ्जर तथा कटारी हाथ लेवो निपट नजीक भये वाणका अवसर ! नहीं । कोई कायर का देख कहे हैं तू क्यों कांप है में कायर को न मारूं तू परे हो अागे महा योधा । खड़ा है उससे युद्ध करने दे, कोई बृथा गाजे है उसे सामन्त कहे हैं हे क्षुद्र कहावृथा गाजे है गाजने
में सामन्तपना नहीं जो तोमें सामथहै तो आगे आव तेरी रणकी भख भगाऊं इस भांति योधावों म। | परस्पर वचनालाप होय रहे हैं तरवार रहे हैं भूमिगोचरी विद्याधर सब ही आये हैं भामण्डल । पवनवेग वीरमृगांक विद्युद्ध्वज इत्यादि बडे बडे. राजा विद्याधर बड़ी सेना कर युक्त महा रण में | प्रवीण सो लवण अंकुशके समाचारसुन युद्धसे पराङ्मुख शिथिलहोयगये और सब बातोंमें प्रवीण हनुमान
सो भी सीताके पुत्र जान युद्धसे शिथिलहोय रहा और बिमानके शिखर विषे आरूढ जानकी को देख । सवही विद्याधर हाथ जोड सीस निवाय प्रणामकर मध्यस्थ होयरहे सीता दोनों सेना देख रोमांच होय । श्राई कांपे है अंग जिसका लक्ण अंकुश लहलहाट करे हैं ध्वजा जिनकी रामलक्षमणसे युद्धके उद्यमी भये रामके सिंहकी ध्वजा लक्षमगाके गरुडकी सो दोनों कुमार महायोधारामलचमणसे युद्ध करते । भये लवण तो रामसे लडे और अंकुश लक्ष्मण से लडे सो लवने श्रावतेही श्री रामकी ध्वजा छेदी और
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