Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पराम
६३.
जैसे न
तिरे तब मुनि मुक्त होयतैसे सरयू नदी के योग से शीघ्र ही नदीसे पार उतर नगरीमें न पहुंच सके तब । जैसे नन्दनवन में देवोंकी सेना उतरे तैसे नदीके उपबनादिमें ही कटक के डेरा कराये॥
अथानन्तर परसेंना निकट आई सुन रामलक्षमण आश्चर्यको प्राप्त भये और दोनों भाई परस्पर बतलावे ये कोई युद्धके अर्थ हमारे निकट पाए हैं सो मुवा चाहे हैं बासुदेवने विरोधित को श्राज्ञा करी युद्ध के निमित्त शीघ्र ही सेना भेली करो ढील न होय जिन विद्याधरोंके कपियों की ध्वजा और बैलोंकीध्वजा
और हाथियों की ध्वजा सिंहोंकी ध्वजा इत्यादि अनेक भांति कीध्वजातिनको बेगबुलावो सो बिराधित ने कही जो श्राज्ञा होयगी सोई होयगा उसही समय सुग्रीवादिक अनेक गजावों पर दूत पठाये सादृत के देखवे मात्रही सब विद्याधर बड़ी सेनासे अयोध्या आये भामंडलभी आया सो भामण्डलको अत्यन्त अाकुलता होय शीघ्र ही सिद्धार्थ और नारद जाय कर कहते भये यह सीताके पुत्र हैं सीता पुण्डरीक पुर में है तब यह बात सुनकर बहुत दुखित भया और कुमारों के अयोध्या श्रायवे पर आश्चर्य को प्राप्त भया और इनका प्रताप मुन हर्षित भया मनके बेगसमान जो विमान उसपर चढ़कर परिवार सहित पुण्डरीकपुर गया बहिन से मिला सीता भामण्डलको देख अति मोहितभई अासूनाखती संती विलाप करती भई और अपने ताई घरसे काढनका और पुण्डरीकपुर प्रायवे का सर्व वृत्तान्त कहा तब भामण्डल बहिनको धीर्य बंधाय कहताभया हे बहिन ते रे पुण्यके प्रभावसे सब भला होयगा और कुमार अयोध्या गये सो भला न कीया, जायकर बलभद्र नारायण को क्रोध उपजायाराम लक्षमण दोनों भाई पुरुषोत्तम देवों से भी न जीते जांय महा योधा हैं कुमारों के और उनके युद्ध न होय सा ऐसा उपाय
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