Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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कौनने कहे असदुष्ट के प्राण हरें ऐसा कौन है जो मर्पकी जीभ से क्रीडा करे, ऐमा कौन मनुष्य और कौन देव जे तुमको असाता उपजावे हे मातः तुम कौन पर कोप किया है जिस पर तुम कोप करो उस का जानिये अायु का अंत आया है. हमपर कृपा कर कोप का कारण कहो इसभांति पुत्रों ने विनती करी तब माता धांसू कार कहती भई हे पुत्रो में काहू पर कोप न किया न मुझे किसीने असातादई तुम्हारी पिता से युद्ध का प्रारंभ सुन मैं दुखित भई सदन करूं हूं. गौतमस्वामी कहे हैं. हे श्रेणिक तब पुत्र माता से पूछते भए हे माता हमाग दिता कौन तब सीता ने अादि से लेय सब वृतांत कहा राम का बंश और अपना बंश विवाह का वृत्तांत और बन का गमन अपना रावणकर हरण और प्रागमन जो। नारदने बृतांत कहा था सो सब विस्तार से कहा कछु छिपाव न राखा और कही तुम गर्भ में आए तब ही तुम्हारे पिता ने लोकापवाद का भयकर मुझे सिंहनाद अटवी में तजी वहां में रुदन करती थी सो राजा वज्रजंघ हाथी पकड़ने गया थो सो हाथो पकड़ बाहुडे था मुझे रुदन करती देखी सो यह महा। धर्मात्मा शीलवन्त श्रावक मुझे महा श्रादर से ल्याया बड़ी बहिन का आदर जनाया और सत् सनमान से यहाँ राखी में भाई भामण्डल समान इस का घर जाना तुम्हारा यहां सन्मान भया तुम श्रीराम के पुत्र हो राम महाराजधिराज हिमाचल पर्वत से लेय समुन्द्रान्त पृथिवी का राज्य करे हैं जिन के लक्ष्मण से भाई सो महा बलवान् संग्राम में निपुणहै न जानिये नाथ की अशुभ वार्ता सुन अक तुम्हारी अथवा देवरकी इसलिये भारतचित्तभई में रुदनकरूं हूं और कोई कारण नहीं तव सुनकर पुत्र प्रसन्न वदन भए और माता से कहते भए हे माता हमारा पिता महा धनुष धारी लोक में श्रेष्ठ लक्ष्मीवान्
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