Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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हत निमित्त जानकी तजी उस गमको सकललोक जाने ऐसा कोई पृथ्वीमें नहीं जो रामको न जाने
इस पृथ्वी की कहां बात स्वर्ग विषे देवोंके समूह गमके गुण वर्णन करें हैं तब अंकुशने कही हे प्रभो ॥३२४ रामने जानकी क्यों तजी सो वृतांत में सुना चाहूं हूं तब सताके गुणोंकर धर्मानुरागहै चित्त जिसका
ऐसा नारदसो आंसू डार कहताभया हे कुमार हो वह सीता सती महा निर्मल कुल विषे उपजी शील वंती गुणवन्ती पतिव्रता श्रावकके आचार विष प्रवीण रामकी आठहजार राणी तिनकी शिरोमणि
लक्षमी कीर्ति धृति लज्जातिनको अपनीपवित्रतोस जीतकर साक्षातजिनवाणी तुल्य सो कोई पूर्वोपार्जित | पापके प्रभावकर मूढलोक अपवाद करते भये इसलिय गमने दुखितहोयनिर्जनबनमें तजी खोटे लोक तिन । की बाणी सोई भई जेठ सूर्यको किरण उसकर तप्तायमान वह सती कष्टको प्राप्त भई महा सुकुमार जिस | में अल्प भी खेद न सहारा पड़े मालती की मालाद्धीपके आतापकर मुरझाय सो दावानल का दाह । कैसे सहार सके, महा भीमबन जिसमें अनेक दुष्ट जीव वहां सीता कैसे प्राणों को घरे, दुष्टजीवकी जिह्वा | भुजंग समान निरपराध प्राणियों को क्यों डसे शुभ जीवोंकी निन्दा करते दुष्टोंकी जीभ के सौ टूक । क्यों न होवें वह महासती पतिव्रतावोंकी शिरोमाण पटुता आदि अनेक गुणोंकर प्रशंसायोग्य अत्यन्त निर्मल महा सती उसकी जो लोक निंदाकरें सो इस भव और परभव विष दुखको प्राप्तहोय ऐसा कहकर शोकके भारकर मौनगह रहा विशेष कछू कह न सका सुनकर अंकुश बोले हे स्वामिन भयंकर बनविषे रामने सीताको तजते भला न किया यह कुलवन्तोंकी रीति नहीं है लोकापवाद निवारनेके और अनेक उपाय हैं ऐसा अविवेकका कार्य ज्ञानवन्त क्यों करेंअंकुशने तो यही कही बार अनंग लवणबोला यहांसे ।
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