Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥१३॥
जैसे पुष्पों की सुगन्धता भ्रमरों के समह को अनुरागी करे तैसे इनकी वासना सब के मनको अनुरागरूप । पुराण करती भई यह दोनों माता का दूध पान कर पुष्ट भए और जिनका मुख महासुन्दर सुफेद दांतों कर
अति सोहता भयो मानों यह दांत दुग्ध समान उज्ज्वल हास्यरस समानशोभायमान दीखे हैं,धायकी प्रांगुरी पकडे प्रांगन में पांव धरते कौन का मन न हरते भए जानकी ऐसे सुन्दर क्रीड़ा के करणहारे कुमारों को देखकर समस्त दुःख भलगई । बालक बड़े भए अति मनोहर सहज ही सुन्दर हैं नेत्र जिनके विद्या पढ़ने योग्य भए तब इनके पुण्य के योगकर एकसिद्धार्थनामाक्षुल्लकशुद्धात्मापृथिवी में प्रसिद्ध वनजंघके मंदिर अाया सो महाविद्या के प्रभाव कर त्रिकाल संध्या में सुमेरुगिरि के चैत्यालय बंद आवे प्रशांतबदन साधु समान है भावना जिसके और खंडितवस्त्र मात्र है परिग्रह जिस के उत्तम अणुव्रत का धारक नानाप्रकार के गुणों करशोभायमान, जिनशासनके रहस्य का वेत्ता समस्त कालरूप समुद्रका पारगामी तपकर मंडित अति सोहे सो बाहारके निमित्त भ्रमता संता जहाँ जानकी तिष्ठे थी वहां आया सीता महासती मानों जिनशासन की देवी पद्मावती ही है सो क्षुल्लक को देख अति आदर से उठकर सन्मुख जाय इच्छाकार कारती भई और उत्तम अन्नपान से तृप्तकिया सीता जिनघर्मियों को अपनेभाईसमानजाने है सो क्षुल्लक अष्ट्रांग निमित्त ज्ञानके वेत्ता दोनों कुमारों को देखकर अति संतुष्ट होयकर सीता से कहता भया हेदेवि तुम सोच न करो जिसके असे देवकुमार समान प्रशस्त पुत्र उसे कहां चिंता। ___अथानन्तर यद्यदि क्षुल्लक महाविरक्त चित्त है तथापि दोनों कुमारों के अनुराग से कैयक दिन तिन के निकट रहा थोड़े दिनों में कुमागेको शस्त्रविद्या में निपुण किया सो कुमार ज्ञान विज्ञान में पूर्ण सर्व ।
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