Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म धीर्यको धारि धर्म ध्यान में तत्पर होता भया । यह कथा गौतम स्वामी राजा श्रेणिक से कन्हे हैं वे पुराण | दोनों भाई महा न्यायवन्त अखंड प्रीतिके धारक प्रशंसायोग्य गुणोंके समुद्र रामके हल मूशलका आयुध
लक्षमणके चक्रायुध समुद्र पर्यत पृथिवीको भली भांति पालते सन्ते सौधर्म ईशान इन्द्र सारिखे शोभते भय वे दोनों धीर स्वर्ग समान जो अयोध्या उसमें देवों समान ऋद्धि भोगते महा कांतिके धारक पुरुषोत्तम पुरुषों के इन्द्र देवेंद्र समान राज्य करतेभये सुकृतके उदयसे सकल प्राणीयोंको अनन्द देयबेमें चतुर सुन्दर चरित्र जिनके सुखसागर में मग्न सूर्यसमान तेजस्वी पृथिवी में प्रकाश करतेभये ॥ इति निन्यानवां पर्व सम्पूर्णम् ___अथानन्तर गौतमस्वामी कहे हैं हे नराधिप रामलक्षमण तो अयोध्या विष तिष्ठे हैं और व लवणांकुश का वृतांत कहे हैं सो सुन अयोध्याके सवही लोक सीताके शोकसे पांडुता को प्राप्त भये
और दुर्बल होय गये और पुण्डरीकपुर में सीता गर्भके भारकर कछु एक पांडुता को प्राप्त भई और दुर्बल भई मानों सकल प्रजा महापवित्र उज्ज्वल इसके गुण बरणन करे है सो गुणों की उज्ज्वलता कर श्वेत होय गई है और कुचों की बीटली श्यामताको प्राप्त भई सो मानों माताके कुच पुत्रोंके पान करिवे के पयके घटहैं सो मुद्रित कर राखे हैं और दृष्टि क्षीरसागर समान उज्ज्वल अत्यन्त माधुर्यता को प्राप्त भई और सर्वमंगलके समूहका अाधार जिसका शरीर सर्वमंगल का स्थानक जो निर्मल रत्नमई प्रांगण उस विषेमन्दमन्द विचरे सो चरणों के प्रतिबिम्ब ऐसे भासे मानों पृथ्वी कमलोंसे सीता की सेवाही करे है और रात्रि विषे चन्द्रमा इसके मंदिर ऊपर पाय निकसे सो ऐसा भासे मानों मुफेद छत्रही है और सुगंध के महलमें सुंदर सेज ऊपर सूती ऐसा स्वप्न देखती भई कि महागजेंद्र कमलों के
For Private and Personal Use Only