Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
एब
॥३१६०
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के जंगम मंदिर ये कुमार सूर्यसमान कमलनेत्र देव कुमार सारिखे श्री वत्सलत्तण कर मंडित है बक्ष स्थल जिनका अनंतपराक्रम के धारक संसार समुद्र के तट आये चरम शरीरी परस्पर महाप्रेमके पात्र सदा धर्म के मार्ग में तिष्ठे हैं देवों का और मनुष्यों का मन हरे हैं ।
भावार्थ जो धर्मात्मा होय सो किसी का कुछ न हरें ये धर्मात्मा परधन परस्त्री तो न हरे परंतु पराया मनहरें । इनको देख सर्वोों का मन प्रसन्न होय ये गुणों की हद को प्राप्त भये हैं । गुण नाम डोक. भी है सो हदपर गांठको प्राप्त होय है और इनके उरमें गाठ नहीं महा निःकपटहै अपने तेज कर सूर्यको जीते हैं और कांतिकर चंद्रमाको जीते हैं और पराक्रमकर इंद्रको औरगंभीरता कर समुद्रको स्थिरता कर सुमेरुको और चमाकर पृथ्वीको और शूरवीरताकर सिंहको चालकर हंस को जीते हैं और महाजल में मकर ग्राह नकादिक जलचरोंसे कीड़ा करे हैं और माते हाथियोंसे तथा सिंह अष्टा पदों से क्रीडा करते खेद न गिने और महासम्यक दृष्टि उत्तम स्वभाव अति उदार उज्ज्वल भाव जिनसे कोई युद्धकर न सके महायुद्ध विषे उद्यमी जे कुमार सारिखे मधु कैटभ सारिखे इन्द्रजीत मेघनाद सारिखे योवा जिनमार्गी गुरु सेवा तत्पर जिनेश्वरकी कथा विषेरत जिनका नाम सुन शत्रुवोंको त्रास उपजे, यह कथा गौतम स्थानी राजा श्रेणिकसे कहते भये हे राजन वे दोनों बीर महावीर गुणरूप रत्नके पर्वत महा ज्ञानवान लीवान शोभा कांति कीर्ति के निवास चित्तरूप मांत हाथी के बशकर बेकी अंकुश महाराज रूप मंदिर के दृढ़ स्तम्भ पृथ्वी के सूर्य उत्तम आचरणके धारक लवण अंकुश नरपति विचित्र कार्य के कर हारे पुंडरीक नगरनें यथेष्ट देवोंकी न्याई रमें महा उत्तम पुरुष जिनके निकट जिनका तंज लख सूर्य भी लज्जावान
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