Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुगर
पन्न देशका रक्षक रजा व्याघ्ररथ उसे युद्धमें जीत बांध लिया तब राजा पृथुने सुनी कि व्याघ्ररथको राजा | बज्रजंघ ने बांधा और मेरा देश उजाड़े है तब पृथुने अपना परममित्र पोदना पुरका पति परम सेना से बुलाया तब बज्रजंघने पुण्डरीकपुर से अपने पुत्र बुलाये तब पिताकी आज्ञा से पुत्र शीघ्रही चलिवे को उद्यमी भये नगरमें राजपुत्रों ने कृचका नगाग बजाया सवसामंत बख्तरपहिरे श्रायुधसजकर युद्ध के चलने को उद्यमी भो नगरमें अति कोलाहल भया पुंडरीकपुरमें जैसा समुद्रगाजे ऐसा शब्दझ्या तब सामंतों के शब्दसुन लवण और अंकुश निकटवर्ती को पूछतेभए यहकोलाहल शब्द किसका है तब किसीने कही अंकुशकुमारक परणायवे निमित्त बज्रजंघ राजाने राजा पृथुकी पुत्री यांचीथी सो उसनेनदई तब राजा युद्धको चढे और अब गजाने अपनी सहायताक अर्थ अपने पुत्रोंको बुलाया है और सेना बुलाई है सो यह सेनाका शब्द है यहसमाचार सुन कर दोनों भाई आप युद्धके अर्थ अति शीघ्रही जायवेको उद्यमी भये कैसे हैं कुमार श्राज्ञा भंग को नहीं सह सके हैं तब बनजंघ के पुत्र इनको मने करते भये और सर्व राज लोक मने करते भये तौभी इन्होंने न मानी तब सीता पुत्रोंके स्नेहकर द्रवीभूत हुवा है मनजिसका सो पुत्रोंको कहती भई तुम बालक हो तुम्हारा युद्धका समय नहीं तब कुमार कहते भए हे माता तू यह क्या कही बडा भया और कायर भया तो क्या यह पृथिवी योधावों कर भोगवे यो. ग्य है और अग्निका कण छोटाही होय है और महावनको भस्म करे है इस भांति कुमागे ने कही तब माता इनको सुभट जन आंखोंसे हर्ष और शोक के किं. पतमात्र अश्रूपात श्रान चुप होय रही दोनों वीर महा धीर स्नान भे.जन कर प्राभूषण पहिर मन वचनक.य कर सिद्धोंको नमस्कारकर फिरमाता ।
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