Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म TH
सो महों से क्या न होय इस संसार की माया में में भी मढ भया इसभांति कहकर प्राज्ञा करी के शीघ्र ही कृतांतवक्र सेनापति को बुलाको, यद्यपि दोबालकों के गर्भसहित सीता है तौभी इसे तत्काल मेरे घर से निकासो यह अाज्ञा करी तब लक्षमण हाथ जोड़ नमस्कार कर कहता भया हे देव सीता को तजना योग्य नहीं यह रोजा जनक की पुत्री महाशीलवती जिनधर्मणी कोमल चरण कमल जिसके महा सुकुमार भोरी सदा सुखिया अकेली कहां जायगी, गर्भ के भारकर संयुक्त परम खेद को धरे यह राज पुत्र तुम्हारे तजे कौन के शरण जायगीऔर आपने देखने की कही सो देखकर कहांदोपभया जैसे जिनरोजके निकट चढाया द्रव्य निर्माल्य होयहै उसे देखिये है परन्तु देखे दोष नहीं और अयोग्य अभक्ष्य वस्तु आंखों से देखिए हैं परन्तु देखे दोष नहीं अंगीकार कीये दोष है इसलिये हे नाथ मोपर प्रसन्न होवो मेरी बीनती मानो महा निर्दोष सीता सती तुममें एकाग्रहै चित्त जिसका उसे न तजो तब राम अत्यन्त विरक्त होय कोषों
आगए और अप्रसन्न होय कही लक्षमण अब कळू न कहना में यह अवश्य निश्चय किया शुभ होवे । अथवा अशुभ होवे निर्मानुष बन जहां मनुष्य का नाम नहीं सुनिये वहां द्वितीय सहाय रहित अकेली सीता। को तजो अपने कर्म के योगकर जीवो अथवा मरो एक क्षणमात्र भी मेरे देश में अथवा नगरमें तथा कोई। के मन्दिर में मत रहो वह मेरी अपकीतिकी करणहारी है, कृतांतवक्र को बुलाया सो चार घोड़ों कास्थ चढ़ा। बड़ी सेना सहित जिसका बन्दीजन विरद बखाने हैं लोक जय जयकार करे हैं सो राजमार्ग होय आया| जिसपर छत्र फिरता और धनुष चढाये वपतर पहिरे कुण्डल पहिरे उसे इस विधि आवता देख नगर के। नर नारी अनेक विकल्प की वार्ता करते भए अाज यह सेनापति शीघ दौड़ा जाय है सो कौन पर।
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