Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन से सुखको प्राप्त भई फिर अशुभका उदय आया तब बिना दोष गर्भवतीको पतिने लोकापवादकै भय । प्रा NO से घरसे निकामी लोकापवाद रूप सर्पके डसवे कर पति अचेत चित्त भया सो बिना समझे भयंकर बन
में तजी उत्तम प्राणी पुण्यरूप पुष्पोंका घर उसे जो पापी वचनरूप अग्निकर बोले हैं सो श्रापही दोष । ।। रूप दहनकर दाह दाहको प्राप्त होय हैं हे देवि तू परम उत्कृष्ट पतिव्रता महासती है प्रशंसायोग्य है चेष्टा । || जिसकी जिसके गर्भाधानमें चैत्यालयों के दर्शन की बांछा उपजी अबभी तेरे पुण्यही का उदय है त । | महा शालवती जिनमति है तेरे शोलके प्रसाद कर इस निर्जन वन में हाथी के निमित्त मेरा अामना।
भया में वनजंघ पुण्डरीकपुर का अधिपति राजा द्वारदवाय सौमवंशी महाशुभ प्राचरण के धारक तिन के सुबन्ध महिषी नामा राणी उसका में पुत्र तू मेरे धर्म के विधान कर बड़ी बहिन है पुण्डरीकपुर
चलो शोक तजो। हे वहिन ! शोक से कळू कार्य सिद्ध नहीं वहां पुण्डरीकपुर से राम तुझे दै || कृपाकर बुलावेंगे । राम भी तेरे वियोग से पश्चाताप कर अति व्याकुल हैं, अपने प्रमाद कर
अमोलिक महा गुणवान रत्न नष्ट भया, उसे विवेकी महा आदर से ढूंढे ही इस लिये हे पतिव्रते | निसंदेह राम तुझे अादरसे बुलावेंगे इस भांति उस धर्मात्माने सीताको शांतता उपजाई तबसीता वीर्य
को प्राप्त भई मानों भाई भामंडल ही मिला तब उसकी अति प्रशंसा करती भई तु मेरा अति उत्कृष्ट
भाई है महा यशवन्त शूरवीर बुद्धिमान शान्त चित्त साधर्मियों पर वात्सल्य का करणहारा उत्तम जीव । है। गौतमस्वामी कहे हैं हे श्रेणिक राजा वज्रजंघ अधिगम सभ्यग्दृष्टि, अधिगम कहिये गुरूपदेशकर
पाया है सम्यक्त जिसने और ज्ञानी है परम तत्त्व का स्वरूप जानन हारा पवित्रहै आत्माजिसकी साधु ।
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