Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुगया
समान हैं जिसके व्रत गुणशील कर संयुक्त मोक्षमार्ग का उद्यमी सो ऐसे सत्पुरुषोंके चरित्र दोष रहित पर उपकारकर युक्त कौनका शोक न निवारें कैसे हैं सत्पुरुष जिनमतमें अति निश्चलहै चित्त जिनका सीता कहे है हे भजजंघ तू मेरे पूर्व भवका सहोदरहै सो जो इस भव में तैने सांचा भाई पना जनाया मेरा शोक संताप रूप तिमिर हरा सूर्यसमान तू पवित्र आत्मा है ॥ इति अठानवेवां पर्वसम्पूर्णम् ॥
अथानन्तर वज्रजंघ ने सीताके चढवेको चणमात्र में अद्भुत पालकी मगाई सो सीता उसपरारूढ़ भई पालकी विमानसमान महा मनोग्य समीचीन प्रमाणकर युक्त सुन्दर हैं थम जिसके श्रेष्ट दर्पण थंभो में जडे हैं और मोतियों की झालरी कर पालकी मंडित है और चन्द्रमा समान उज्वल चमर तिनकर शोभित है मोतियों के हार जल के बुदबुदे समान शोभे हैं और विचित्र जे बस्रतिनकर मंडितहै चित्राम कर शोभितहै सुन्दर है झरोखा जिसमें ऐसी सुखपालपर चढ परम ऋद्धि कर युक्त बड़ी सेना मध्य सीता चली जायहै आश्चर्य को प्राप्त भई कर्मोंकी बिचित्रताको चितवे है तीनदिनमें भयंकर बनको उलंघ पुण्डरीकपुर के देशमें आई उत्तमहै चेष्टा जिसकी सब देशके लोक माताको अाय मिले ग्राम २ में भेट करें कैसा है बनजंघका देश समस्त जातिके अन्नकर जहां समस्त पृथिवी श्राछादित होयरही
और कूकड़ाउडान नजीक हैं ग्रामजहां रत्नोंकी खान स्वर्ण रूपादिक कीखान सुरपुर जैसे पुरसोदेखती थकी सीता हर्षको प्राप्त भई बन उपबनकी शोभा देखती चली जायके ग्राम के महंत भेट कर नाना प्रकार स्तुति करें हैं हे बगवति हे माता आपके दर्शन कर हम पाप रहित भये कृतार्थ भये और बारबार बन्दना करते भये अर्घ पाद्य किये और अनेक राजा देवों समान श्राय मिले सो नानाप्रकार |
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