Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पराग
समस्त राणी सीताकी सेवा करे और ऐसे मनोहर शब्द निरन्तर कहे हैं हे देवते हे पूज्य हे स्वामिनी हे || ईशानने सदा जयवन्त हो बहुत दिन जीवो आनन्दको प्राप्त होवो वृद्धिको प्राप्त होवो आज्ञा करो इस भांति स्तुति करें और जो आज्ञा कगे सो सीस चढ़ावें अति हर्षसे दोस्कर सेवा करें और हाथ जोड सीस निवाय नमस्कार करें वहां सीता अति आनंदसे जिन धर्मकी कथा करती तिष्ठे और जोसामंतों की भेट आवे और राजा भेट करें सो जानकी धर्मकाय में लगावे यहतो यहां धर्मका आराधन करे है। अयानन्तर वह कृतांतवक सेनापति तप्तायमानहै चित्त जिसका रथके तुरंगखेदको प्राप्त भएथे तिन को खेदरहित करता हुवा श्रीगमचन्द्रके समीप अाया इसको पावता सुन अनेक राजा सन्मुख पाए सो कृतांतबक आयकर श्रीरामचंद्रके चरणों को नमस्कार कर कहताभया हे प्रभो में प्राज्ञा प्रमाण सीता को भयानक बन में मेलकर आया हूं उसके गर्भमानही सहाई है हे देव वह नाना प्रकारके भयंकर जीवों के प्रति घोर शब्दकर महा भयकारी है और जैसा बेताल कहिये प्रेतों का वन उसका श्राकार देखा न जाय तैसे सघन वृक्षों के समूह कर अन्धकार रूपहै जहां स्वतःस्वभाव पारणे भैसे और सिंह द्वेषकर सदा युद्धक हैं और जहां घूघू बसे हैं सो विरूप शवदकर हैं और गुफावों में सिंह गुंजार करें
सो गुफा गुजार रही हैं और महाभयंकर अजगर शब्द करें हैं और चीतावोंकर हते गये हैं मृगजहां कालको भी विकराल ऐसा वह बन उस विषे हे प्रभो सीता अश्रुपात करती महादीम बदन आपको जो
शब्द करतीभई सो सुनो, आप आत्मकल्याण चाहो हो तो जैसे मुझे लजीतैसे जिनेंद्रकी भक्ति न तजनी, जिसे लोकोंके अपवाद कर मासे भतिअनुरागथा तोभी तजीतैसे किसीके कहनेसे जिनशासनकी श्रद्धा
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