Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पा
1८६७
दुर्बल देह धारीयों को माता समान पाले है सिद्धि कार्य का करण हारा शत्रुरूप पर्वतों को बज पुराण- समान है शास्त्र विद्या का अभ्यासी परधन का त्यागी पर स्त्री को माता बहिन बेटी समान माने है
अन्याय मार्ग को अजगर सहित अन्धकूप समान जाने है धर्म में परप अनुरागी संसार के भ्रमण से भय भीत सत्यवादी जितेन्द्रिय है इसके समस्त गुण जो मुख से कहा चाहे सो भुजावों से समुद्र को तिरा चाहे है, ये बात बजू जंघ के सेवक कहे हैं, इतने में ही राजा श्राप अाया हाथी से उतर बहुत विनय कर सहज हो है श द दृष्टि जितकी मो सीता से कहता भया हे बहिन वह बज समान कठोर महा असमझ है जो तुझे असे बन में तजे और तुझे तजते जिस का हृदय न फट जाय हे पुण्यरूपिणि अपनी अवस्था का कारण कहो, विश्वास को भज भय मत करे और गर्भ का खेद मत करे लब यह शोक से पीडित चिन फिर रुदन करतीभई राजाने बहुत धीर्य बंधाया तब यहहंस की न्याई अांस डार गद् गद् वाणीसे कहतो भई हेराजन मो मन्दभागनी की कथा अत्यन्तदीर्घ है यदि तुम सुना चाहो हो तो चित्त लगाय सुनो में राजा जनककी पुत्री भामण्डलकी बहिन राजादशरथके पुत्रकी बधू सीता मेरानाम रामकी राणी राजा दशरथने केकईको वरदान दीयोथा मो भरतको राज्यदेकर राजातो बैरागी भये और राम लक्ष्मण वनको गये सो में पतिके संग वनमें रही, रावण कपटसे मुझे हरले गया ग्यारवें दिन मैंने पतिकी वार्ता सुनभोजन किया पति सुग्रीवके घररहे फिर अनेक विद्याधरोंको एकत्रकर आकाशके
मार्गहोय समुद्रको उलंघ लंकागये, रावणको युद्ध में जीत मुझे ल्याये फिर राज्यरूप कीचको तज भरत | तो वैरागी भये कैसे हैं भरत जैसे ऋषभदेवके भरत चक्रवर्ती तिनसमानहै उपमा जिनकी सो भरत तो
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