Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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है सेना भी भयंकरहै सो सकल सेना निश्चल होय रही ॥ इति साननवां पर्वसम्पूर्णम् ॥ पुराण || अथानन्तर जैसी महाविद्याकी यांभी गंगा थंभी रहे तैसे सेनाको थंभीदेख राजा बजजध निकटवर्ती
पुरुषों को पूछताभया कि सेनाके थंभने का कारणक्या है तबवह निश्चयकर राजपुत्री के समाचारकहते।
भए उससे पहिले राजाने भी रुदनके शब्दसुने सुनकर कहताभया जिनका यह मनोहर रुदनकाशन । मुनिये है सो करो कौन है तब कई एक अग्रेसर होय जाय कर पूछते भये हे देवि तू कौन है और इस निर्जन वन में क्यों रुदन करे है तो समान कोऊ और नहीं तूदेवी है अक नाग कुमारी है अक कोई उत्तम नारा है तू महा कल्याण रूपिणी उत्तम शरीर की धरणहारी तुझे यह शोक कहां हमको यह बड़ा कौतुक है तब यह शस्त्र धारक पुरुषों को देख प्राप्त भई कांपे है शरीर जिसका सो भयकर उनको अपने अपने आभरण उतारकर देने लगी तब वे स्वामीके भयकर यह कहते भये हे देवी त क्यों डरे हैं शोक का तज धीरता भज आभषण हमको काहे को देवे है तेरे ये श्राभषण ते रेही रहो ये तुझे योग्य हैं हे माता त बिहुल क्यों होय है, विश्वाश गह यह राजा वज्रजंघ पृथिवी में प्रसिद्ध महा नरोत्तम राजनीनि कर युक्त है और सम्यकदर्शन रूप रत्न भषण कर शोभित है केसाहै सम्पदर्शन जिस समान और रत्न नहीं अविनाशी है अमोलिक है किसीसे हरा न जाय महा सुखको दायक शंकादिक मल रहित सुमेरु सारिखा निश्चल है हे माता जिसके सम्यग्दर्शन होवे उसके गुण हम कहांलग वर्णनकरें यह राजा जिनमार्गके रहस्यका ज्ञाता सरणागत प्रतिपालक है परोपकार में प्रवीण महा दयावान महा निर्मल पवित्रात्मा निंद्य कर्मसे निबत्त लोकों का पिता समान रक्षक, महा दातार जीवां की रक्षा में सावधान दीन अनाथ
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