Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म
राण
: २६ ॥
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आई लचमसमान है रूप जिनके और पवनकर चंचल जो कमल उस समानहैं नेत्र जिनके, आय भरत भी भई तिनके नाम सीता उर्वशी, भानुमती, विशल्यासुंदरी, रौद्री, रत्नवती, लक्ष्मी, गुणमती, बंधु मती, सुभद्रा, कुवेरा, नलकूवरा कल्याणमाला, चन्द्रनी, मदनोत्सवा, मनोरमा, प्रियनन्दा, चन्द्रकांता, कला वती, रत्नस्थली, सरस्वती,श्रीकांता. गुणसागरा, पद्मावती, इत्यादि सर्प आई जिनकरूपगुणका वर्णन किया न जाय मनको हरें श्राकारराजन के दिव्य वस्त्र और आभूषण पहिरे वडेकुल में उपजी सत्यवादनी शीलवंती पुण्यकी भूमिका समस्त कला विषे निपुण सो भरत के चौगिर्द खडी मानो चारों ओर कमलों का बनही फूल रहा है भरतका चित्तराज संपदाविषे लगायने को उद्यमी प्रति आदर कर भरतको मनोहर बचन कहती भई कि हे देवर हमारा कहा मानों कृपा करो श्रावोसरोवरों विषे जलक्रीड़ा करो और चिंता तजो जितबातकर तुम्हारे बड़े भाइयोंको खेद न होय सो करो और तुम्हारी माताको खेदन हो यस करो और हम तुम्हारीभावज हैं सो हमारी बीनती अवश्य मानिये तुम विवेकी विनयवानहो ऐसा कह भरतको सरोवर पर ले गई भरत का चित्तजल कीड़ासे विरक्त यहमव सरोवर में पैठी वह विनयकरसंयुक्त सगेवरके तीरऊभा ऐसासो हेमानों गिरिराज ही है और वे स्निध सुगंध सुन्दर वस्तुवो कर इसके शरीर के विलेपन करती भई और नाना प्रकार जल कोल करती भई यहउत्तम चेष्टाका धारक काहूपर जल न डारता भया फिर निर्मल जल से स्नान कर सरोवर के तीर जे जिन मंदिर वहां भगवान की पूजा करता भया उस समय त्रैलोक्य मंडन हाथी कारी घटा समान है आकार जिसका सो गजबंधन तुडाय भयंकर शब्द करता निज द्यावस थकी निकसा अपने मद झरखे कर चौमासे कैसा दिनकरता संता मेवगर्जना समान उसकी गाज सुन कर
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