Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म विचारी देशांतर जाय विद्या पद्धं तब घरसे निकसा पृथिवी विषे भ्रमता चारों वेद और वेदोंके अंगपटा Em: फिर राजगृही नगरी श्राय पहूंचा भाईके दर्शन की अभिलाषा सो नगरके वाहिर सूर्यग्रस्त होयगया
आकाशविर्ष मेघपटल के योगसे अति अंधकार भया सोजीर्ण उद्यानके मध्य एक यक्ष के मंदिरवहां बैठा और इस के भाई विनोदकी समिधा नामास्त्री सो महा कुशीली एक अशोकदत्त नामा पुरुषसे अासक्त सो तामे यक्षके मंदिर का संकेत कियाथा सो अशोकदत्तको तो मार्गमें कोटपाल के किंकरने पकड़ा और विनोद खडग हाथमें लिए अशोकदत्तके मारवेको यक्षके मंन्दिर पाया सो जार के भुलेसे खडग से भाई रमणको मारा अंधकारमें दृष्टि न पडा सो रमण मुवा विनोद घर गया फिर विनोद भी नुवा सो दोनों अनेक भवधारतेभए फिर विनोदका जीवतो सालवन बनमें श्रारण सा भया
और रमणका जीवधन्धा रीछ भया सो दोनों दावानलमें जरे मरकर गिरिवन विषे भल भए फिर मरकर हिरण भए स. भीलने जीवते पकडे दोनों अति सुन्दर सो तीसरा नागयण स्वयंभूति श्रीविमल नायगी के दर्शन जायकर पीछा अावेथा उसने दोनों हिरण लिय और जिन मंदिर के समीप गव सा राजद्वारसे इनकोमनवांछित आहारामले और मुनियोंके दर्शनकरेजिनवाणीका श्रवणकरें तिनमे ग्ममका जीव जो मृगथा सो समाधि मरमाकर स्वर्गलोग गया और विनोदका जीव जो मृगथा वह आर्ति यानसे नियंचगतिमें भूमाफिर जंबूद्धीपक भरत क्षेत्र में कंपिल्या नगर वहां धनदत्त नाम वणिकवाईस कोटि द नारका स्वामी भया चार टांक स्वर्णकी एक दीनार होय है ता बाणकके बागीनाम स्त्री. उसके गर्भ में दूजे भाई रमणका जीव मृग पर्यायसे देव भयाथा सो भूपणनाम पुत्रभया निमित्तज्ञानी ने इसके पिता
For Private and Personal Use Only