Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म गुरुवोंके चरणमें नम्रीभूत है सीस जिसका महा शांत चित्त परम वैराग्य को प्राप्त हुवा तत्काल उठ
कर हाथ जोड केवली को प्रणामकर महा मनोहर बचन कहता भया हे नाथ मैं संसार बनमें अनन्त काल भ्रमण करता नाना प्रकार कुयोनियों में संकट सहता दुखी भया अब मैं संसार भमणसे थका मुझे मुक्तिका कारण तुम्हारी दिगम्बरी दीक्षा देवो यह आशारूप चतुर्गति नदी मरणरूप उग्रतरंग को धरे उसमें मैं डूवूहूं सो मुझे हस्तालम्बन दे निकासा ऐसा कह केवलीकी आज्ञा प्रमाण तजाहै समस्त परिग्रहजिसने अपने हाथोंसे सिरके केश लोंचकिये परमसम्यक्ती महाव्रतको अंगीकार जिनदीक्षाधर दिगम्बर भया, तब आकाशमें देव धन्य २ शब्द कहतेभए और कल्पवृचोंके फूलों की वर्षाकरते भए, हजारसे अधिक राजा भरतके अनुरागसे राजऋद्धि तज जिनेंद्री दीक्षा धरते भये और कैयक अल्पशक्ति थे वे अणुव्रतधर श्रावक भये, और माता केकई पुत्रका वैराग्य सुन प्रांमुवों की वर्षा करती भई व्याकुलचित होय दौड़ी सो भूमिमें पडी महामोहको प्राप्तभई पुत्रकी प्रीतिकर मृतकसमान होय गयाहै शरीर जिस का सो चन्दनादिकके जलसे छांटी तोभी सचेत न भई धनीवर में सचेतभई जैसे वत्स बिना गाय पुकारे तैसे बिलाप करतीभई, हाय पुत्र महा विनयवान मुणोंकी खान मनको आल्हादका कारण हाय तू कहां गया, हे अंगज मेरा अंग शोकके सागरमें डूबे है सो थांभ तो सारिखे पुत्र बिना में दुःखके सागरमें मग्न शोककी भरी कैसे जीऊंगी हाय हाय यह क्या भया इसमांति विलाप करती माता श्री राम लक्षमण ने संबोधकर विश्रामको प्राप्तकरी अति सुन्दर बचनोंसे धीर्य बंधाया हे मात भरत महा विवेकी ज्ञानवान हैं तुम शोकतजो हम क्या तुम्हारे पुत्रनहीं तुम्हारे आज्ञाकारीकिंकर हैं और कौशल्या सुमित्रा मप्रभानबहुत
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