Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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प बत्रों के बनावें तथा सुन्दर समस्त उपकरण देहुरा चढ़ावें लोक समस्त पृथिवी विषे जिन पूजाकरें। पुगस्य और कैलाश सम्मेद शिखर पावांपुर चंपापुर गिरनार शत्रुजय मांगी तुंगी आदि निर्वाण क्षेत्रों विषे ।
विशेष शोभा करावो कल्याण रूप दोहुला सीता को उपजा है सो पृथिवी विषे जिन पूजाकी । प्रवृत्ति करो हम सीतासहित धर्म क्षेत्रोंमें विहार करेंगे यह रामकी आज्ञा सुन वह द्वारपाली अपनी ठौर
औरको राखकर जाय मंत्रियोंको आज्ञा पहुंचावती भई और वे स्वामीकी आज्ञा प्रमाण अपने किंकरों को आज्ञा करते भए सर्व चैत्यालयों में शोमा कराई और महा पर्वतोंकी गुफाओं द्वार पूर्ण कलश थापे मोतियों के हागे कर शोभित और विशाल स्वर्णनकी भीतिमें मणियोंके चित्र पर मद्रव्य नाम उद्यान की शोभा नंदन बनकी शोभा समानकर अत्यन्त निर्मल शुद्धमांग योंके दर्पण थंभमें थापे
और झरोखाओंके मुख विष निर्मल मोतियों के हार लटकाये सो जल नीझरना समान सोहे हैं और पांच प्रकारके रत्नों को चूर्गा कर भूमि मंडित करी और सहस्रदल कमल तथा नानाप्रकारके कमल तिनकर शोभा करी और पांच वर्ण के मगियों के दंड तिनमें महा सुन्दर बस्रों की ध्वजा लगाया मंदिरों के शिखर पर चढ ई, और नाना प्रकारके पुष्पोंकी माला जिनपर भूमर गुंजार करें ठौर | लुंबाई हैं और विशालवादित्रशाला नाट्यशाला अनेक रची हैं तिनकर बन अति शोभे है मानों नंदन बनही है तब श्रीरामचन्द्र इन्द्रसमान सत्र नगरके लोकोंकर युक्त समस्त गजलोकों सहित बनमें पधारे सीता और श्राप गजपर श्रारुढ़ कैसे सोहें जैसे शची सहित इन्द्र ऐरावत गजपर चढ सोहैं और लक्ष्मण | भी परम ऋद्धिको धरे बनमें जाते भए और और भी सब लोक अानन्दस बन गये, और सबोंके अन्न ।
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