Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पिशाचादि सब डरें जौंलग शीलरूप खड्ग को धारे तलग सक्कर जीता न आय महा दुर्जय है "विशिल्या पतिव्रता है ब्रह्मचारिणी नहीं इसलिये वह शक्ति नहीं मद्य मांस मैथुन यह महापापहैं इनके सेवन से शक्ति का नाश होय है जिनकी व्रतशील नियम रूप कोटभग्न न भया तिनको कोई विघ्न करखें समर्थ नहीं एक कालाग्नि नामद्ध महा भयंकर भया सो हे गरुडैन्द्र तुम सुना ही होगा फिर वह स्त्री सेयासक्त होय नाश को प्राप्त भया इसलिये विषय का सेवन विषसे भी विषम है परम औश्वर्य का कार एक अखंड ब्रह्मचर्य है अब में मित्रके शत्रु पर जाऊंगा तुम तुम्हारे स्थानक जावो । ऐसा गरुडेंद्र से कहकर चमरेन्द्र मथुरा आए, मित्रके मरण कर कोपरूप मथुरा में वही उत्सव देखाजोमधु के समयथा तब
सुरेद्रने विचारी ये लोक महादुष्टकृतघ्न हैं देशकाघनी पुत्र सहित मरगया है और औरायबैठा है इनको सोक चाहिये कि हर्ष, जिसके भुजका छाया पाय बहुत काल सुखसे बसे उस मधु की मृत्यु का दुःख इनको क्यों न भया ये महाकृतघ्न हैं सो कृतघ्नका मुख न देखिये लोकोंकर शूरवीरसँवा योग् यशूरवीरोंकर पण्डित सेवा योग्य हैं सो पण्डित कौन जोपराया गुण जाने सो ये कृतघ्न महा मूर्ख हैं जैसा विचार कर मथुरा के लोकों पर चमरेन्द्र कोपा इन लोकों का नाश करूं यह मथुरापुरी इस देश सहित क्षय करू । महा क्रोध कें वश होय सुरेन्द्र लोकों को दुस्सह उपसर्ग करता भया, अनेक रोग लोगों को लगाये प्रलय काल की अग्नि समान निर्दयी होय लोक रूपवन को भस्म करने को उद्यमी भया, जी जहां ऊभी था सोवहां ही मर गया, और बढ़ाया सोबैठा ही रहा, सूता था सो सूताही रहा मरी पड़ी लोंक को उपसर्ग देख मित्र देव देवता के भयसे शत्रुघ्न अयोध्या श्राया सो जीत कर महा शूरवीर भाई आया बलभद्र नारायन अति हर्षित
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