Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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429४॥
4: शरभ मकरध्वज हरिनाग श्रीधर मदन यह महाप्रसिद्ध सुन्दर चेष्टा के धारक जिनके गणों कर सब पुराण लोकों के मन अनुरागी और विशिल्या का पुत्र श्रीधर अयोध्या में ऐसा सोहे जैसा आकाश में
चन्द्रमा और रूपवती का पुत्र पृथिवीतिलक सोपृथिवी में प्रसिद्ध और कल्याणमाला का पुत्र महा कल्याण का भाजन मंगल और पद्मावती का पुत्र विमलप्रम और बनमालाका पुत्र अर्जुनप्रभ और अतिवीर्य की पुत्री का पुत्र श्री केशी और भगवतीका पुत्र सत्य केसीऔर मनोरमाका पुत्र सुपार्श्वकीर्ति ये सबही महा बलवान पराक्रमकेधारक शस्त्र शास्त्र विद्यामें प्रवीण इन सब भाइयों में परस्पर अधिक प्रीति जैसे नख मांस में दृढ कभी भी जुदे न होवें, तैसें भाई जुदे नहीं योग्यहै चेष्टा जिनकी परस्पर प्रेमके भरे वह उसके हृदयमें तिष्ठे वह उसके हृदयमें तिष्ठे, जैसे स्वर्गमें देव रमें तैसे ये कुमार अयोध्यापुरीमें रमते भये, जेप्राणी पुण्याधिकारी हैं पूर्व पुण्य उपार्जे हैं महाशुभ चित्तहैं तिनके जन्म से लेकर सकल मनोहर बस्तु ही श्राय मिले हैं रघुवंशियों के साढे चारकोटि कुमार महामनोग्य चेष्टाके धारक नगरके बन उपवनादि में महा मनोग्य चेष्टासाहित देवों समान रमते भये और राम लक्ष्मणा के सोलह हजार मुकटवन्ध राजा सूर्यसे भी अधिक तेजके धारक सेवक होते भये। इति श्रीपद्मपुराण चतुर्थ महाअधिकार समाप्त हुवा ।
अथलवणांकुशके वृतान्तमें पांचवां महा अधिकार । अथानन्तर रामलक्षमण के दिन प्रति श्रानन्दसे व्यतीत होय, धर्म अर्थ काम ये तीनों इनके अवि । रुद्ध होते भये, एक समय सीता मुखसे विमानसमान जो महिल उसमें शरदके मेघ समान उज्ज्वल सेज | | मैं सोवती थी सो पिछले पहिर वह कमलनयनी दोयस्वप्ने देखती भई फिर दिव्यवादिनोंके नादमुन प्रात |
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