Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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प्रयानन्तर राम लक्ष्मण महाप्रीतिसे भाई शत्रुघ्न से कहते भए जो तुमको रुचे सो देश लेवो। पद्म पुराण | जो तुम प्राधी अयोध्या चाहो तो श्राधी अयोध्या लेवो अथवा राजगृह अथवा पोदनापुर अथवा १८५९ पोंडसुन्दर इत्यादि सैकड़ा राजधानी हैं। तिन में जो नीकी सो तुम्हारी तब शत्रुघ्न कहता भया
मुझ मथुरा का राज्य देवो, तब राम बाले हे भातः वहां राजा मधुका राज्य है और वह रावणका जनाई है अनेक युद्धों का जीतनहारा उस को चमरेन्द्र ने त्रिशूल रत्न दिया है सो ज्येष्ठ के सूर्य समान दुस्सह है और देवोसे दुर्निवार है उसकी चिन्ताहमारे भी निरन्तर रहेहै वह राजा मधु हरिबंशियों के कुल रूप श्राकाश विषे सूर्य समान प्रतापी है जिसने वंशमें उद्योत किया है और जिसका लव
र्णार्णव नामा पुत्र विद्याधर्मों से भी असाध्य पिता पुत्र दोनों महाशूरवीर है इसलिये मथुरा टार और राज्य चाहो सोही लेवो तब शत्रुघ्न कहता भया बहुत कहिवेसे क्या मुझे मथुराही देवो जो में मधुके छाते की न्याई मधुको रण संग्राम में न तोडलूं तो दशरथका पुत्र नहीं जैसे सिंहों के समूह को अष्टापद तोड़ डारे तैसे उसके कटक सहित उसे न चूर डारूं तो में तुम्हारा भाई नहीं, जो मधुको मृत्य प्राप्तन करतो में सामाको कुचि में उपजाही नहीं इस भांति प्रचंड तेजका धरणहारा शत्रुघ्न कहता भया तव समस्त विद्याधरों के अधिपति आश्चर्यको प्राप्त भए और शत्रुन्न की बहुत प्रशंसा करतेभए तब शत्र. इन मथुरा जायवेको उद्यमी भया तक श्राराम कहतेभए. हे भाई में एक याचना करूंहूं सो मझे दक्षिण देवो तव शत्रुघ्न कहताभया सबके दाता बापहो सब अापके याचक हैं आप याचो से वस्तु क्या मेरे णही के नाथ पाप हो तो और वस्तुकी क्या बात एक मधु से युद्ध तो में न तजू और कहो सोही।
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