Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पन
पुराण
सो भगवान पुरुषोत्तम तीन लोक कर नमस्कार करने योग्य पृथिवी रूप पत्नी के पति भए कैसी है । पृथिवी रूप पत्नी विन्ध्याचल गिरि बेई हैं स्तन जिस के और समुद्र है कटिमेखला जिस की सो बहुत दिनपृथिवी का राज्यकीया तिनके गुण केवली बिना और कोई जानवे समर्थ नहीं जिनका अश्वर्य देख इन्द्रादिक देव अाहर्य को प्राप्त भए एक समय नीलांजसा नामा अप्सरा नृत्य करती थी सो विलायगई । उसे देख प्रतिबुद्धभए वे भगवान् स्वयं बुद्धमहामहेश्वर तिन की लोकांतिक देवों ने स्तुति करी जगत् । गुरु भरत पुत्रको राज्य देय वैरागी भए इन्द्रादिक देवों ने तप कल्याणक किया, तिलक नामा उद्यानमें महाबत धरे तब से यह स्थानक प्रयाग कहाया भगवान ने एक हजार वर्ष तपकिया सुमेरु समान अचल सर्वपरिग्रह के त्यागी महातप करते भए तिनके संगचारहजार राजा निकसे, वे परोषह न सह सकनेकर बत भ्रष्ट भये स्वेच्छा विहारी होय वन फलादिक भखते भए तिनके मध्यमारीच दण्डीका भेषधारता भया उस के प्रसंग से सर्योदय चन्द्रोदय राजा सुप्रभ के पुत्र के राणी प्रल्हादना की कुक्षि विषे उपजे वे भी चारित्रभ्रष्ट भए मारीच के मार्ग लगे कुधर्म के प्राचरण से चतुर्गतिसंसार में भ्रमें अनेक भवों में जन्म मरण किए फिर चन्द्रोदय का जीव कर्म के उदय से नागपुरनामा नगर में राजा हरिपति के राणी मनोलता के गर्भ विषे उपजा कुलंकर नाम कहाया फिर राज्यपाया और सूर्योदय का जीव अनेक भव । भ्रमण कर उस ही नगर विषे विश्व नामा ब्राह्मण जिस के अग्निकुण्ड नामा स्त्री उस के श्रुतिरति नामा पुत्र भया सो पुरोहित पूर्व जनम के स्नेह से राजी कुलकर को अतिप्रिय भया, एक दिन राज कुनकर तापसियों के समीप जाय था सो मार्ग विषे अभिनन्दन नामा मुनि को दर्शन भया वे मुनि ।
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