Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
1८३३" ।
पद क्रोध न करे चित्राम कैसा खड़ा है यह त्रैलोक्यमंडन हाथी समस्त सेना का श्रृंगार है जो आप को पुराण उपाय करना होय सो करो हम हाथी का सब बृतांत आप से निवेदन किया, तब राम लक्षमण गजराज
की चेष्टा सुन अति चिन्तावान् भए मनमें विचारे हैं यह गजबंधन तुड़ाय निसरा कौन प्रकार क्षमा को प्राप्त भया और आहार पानी क्यों न लेय दोनों भाई हाथी का शोच करते भए । ८४वां पर्व पूर्ण भया । ___अथानन्तर गौतमस्वामी राजा श्रेणिक से कहे हैं हे नराधिपति उस ही समय अनेक मुनियों सहित देशभूपण कुलभूषण केवली जिनका वंशस्थल गिरि ऊपर राम लक्ष्मणने उपसर्ग निवाराथा और जिन की सेवा करनेकर गरुडेन्द्र ने राम लक्षमणसे प्रसन्न होय उनको अनेक दिव्यशस्त्रदिए जिनकररद्ध में विजयपाई वे भगवान्केवली सुरअसुरोंकर पूज्य लोक प्रसिद्ध अयोध्या नन्दन वन समान महेन्द्रोदय नामा बन में महा संघ सहित प्राय विराजे, तबराम लक्षमण भरत शत्रुघन दर्शनके अर्थ प्रभातही हाथीयोंपर चढ़ जायवे को उद्यमी भए और उपजा है जाति स्मरण जिसको ऐसा जोत्रैलोक्यमण्डन हाथी सो प्रागेागे । चला जाय है जहां वे दोनों केवलो कल्याण के पर्वत तिष्ठे हैं वहां यह देवों समान शुभचित्त नरोत्तम गए
और कौशल्या सुमित्रा केकई सुप्रभा यह चारों ही माता साधु भक्ति में तत्पर जिनशासन की सेवक वर्ग निवासिनी देवीयों समान सैकड़ो राणीयों के युक्त चली और सुग्रीवादि समस्त विद्याधर महा विभूति संयुक्त । चले केवली का स्थानक दूर ही से देख रामादिक हाथी से उतर आगे गए, दोनों हाथ जोड़प्रणामकर पूजा करी, श्राप योग्यभूमिमें विनयसे बैठे तिनके वचन समाधानचित्तहोय सुनतेभए, वेवचनवैराग्य केमूलरागमदिककेनाशक क्योंकिरागादिक संसारकेकारणौरसम्यक्दर्शन ज्ञानचारित्रमोक्षके कारण हैं केवलीकी दिव्य
For Private and Personal Use Only