Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥८२४
आदि अनेक नगर जिनमें न्याय की प्रवृति प्रजा सब सुखी संपदा कर पूर्ण और महा मनोहर बन उपवन | पुराण नाना प्रकार फल पुष्पों कर शोभित और महा सुन्दर स्वर्ण रत्नमई सिबाणों कर शोभित क्रीड़ा करवे योग्य
वापिका और पुर तथा ग्रामों में लोकप्रति सुखी जहां महिल अति सुन्दर और किसाणों को किसी भांति का दुःख नहीं जिनकगाय भैसोंके समूह सर्व भांतिकेसुख और लोकपोलों जैसे सामन्त और इन्द्र तुल्यविभव के घरण हारे महा तेजवन्त अनेक राजा सेवक और राम के स्त्री आठ हजार और लक्षमणके स्त्री देवांगना समान सोलह हजार जिनके समस्त सामग्री समस्त उपकरण मनवांछित सुखके देनहारी श्रीरामने भगवान के हजारां चैत्यालय कराये जैसे हरिषेण चक्रवर्तीने कराये थे वे भब्यजीव सदा पूजित महा ऋद्धिके निवास देशग्राम नगर वनगृहगली सर्व ठौर २ जिनमंदिर करावतेभये सदासर्वत धर्मकी कथालोक अति सुखी सुकौशलदेशक मध्य इन्द्रपुरी तुल्य अयोध्याजहां अति उतंग जिनमंदिर जिनका वर्णन किया न जाय और क्रीडा कर के पर्वत मानों देवोंके क्रीड़ा करवे के पर्वतहैं प्रकाशकर मंडित मानों शरदके बादरही हैं अयोध्या का कोट अति उतंग समुद्रकी वेदिका तुल्य महाशिखर कर शोभित स्वर्ण रत्नोंका समूह अपनी किरणों कर प्रकाश कियाहै आकाश विषे जिसने जिसकी शोभा मनसे भी अगोचर निश्चयसेती यह अयोध्या नगरी पवित्र मनुष्योंकर भरी सदाही मनोग्यथी अब श्रीरामचन्द्र ने अति शोभित करी जैसे कोई स्वर्ग सुनिये है जहां महासंपदा है सोमानों रामलक्ष्मण स्वर्गसे आये सो मानों सर्व संपदाले पाए आगे
अयोध्या थी इसलिये रामके पधारे अति शोभायमान भई पुण्य हीन जीवों को जहांका निवास दुर्लभ । अपने शरीरकर तथा शुभ लोकोंकर तथा स्त्री धनादि कर रामचन्द्र ने स्वर्ग तुल्य करी, सर्व ठौर |
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