Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पुराणा
पाट२३॥
पद्म । की लक्ष्मी का विस्तार सुनने की मेरे अमिलापा है तब गौतमस्वामी कहते भए हे श्रेणिक राम लक्ष्मण
भरत शत्रुघन इनका वर्णन कौन कर सके तथापि संक्षेप से कहे हैं राम लक्ष्मण के विभव का वर्णन हाथी घर के बियालीस लाख और रथ एतेही घोडे नौ कोटि, पयादे व्यालीस कोटि और तीन लंड के देव विद्याधर सेवक रामके रत्न चार हल मुशल रत्नमाला गदा और लक्ष्मण के सात संख चक्र गदा खड्ग दण्ड नागशय्या कौस्तुभमणि राम लक्ष्मण दोनों ही वीरं महाधीर धनुषधारी और जिनका घर लक्ष्मी का निवास इन्द्रर के भवन तुल्य ऊंचे दरवाजे और चतुश्शाख नामा कोट महापर्वत के शिखर समान ऊंचा
और वैजयन्तीनामा सभा महामनोग्य और प्रसाद कुटम्बनामा अत्यंतउत्तंग दशदि के अवलोइन का यह औरविन्ध्याचलपर्वतसारिखो वर्धमानक नामा नृत्य देखवेका गृह और अनेक सामग्री सहितकार्य करन का गृह और कूकड़े के अंडे समान महाअद्भुत शीतकाल में सोक्ने का गर्भगृह और ग्रीष्म में दुपहरी के विराजवे का धारा मंडपगह, इक थंभा महा मनोहर और राणीयों के घर रत्नमई महासुन्दर दोनों भाइयों की सोराकी शय्या जिनके सिंहों के आकार पाए पद्मराग मणि के अतिसुन्दर मोहका नान विजुरी कांसा चमत्कारधरे, वर्षा ऋतु में पौढये का महिल और महाश्रेष्ठ उगते सूर्य मगाना नहासन और चन्द्रमा तुल्य उज्ज्वल चमर और निशाचर समान- उज्ज्वल छत्र और महा सुन्दर विमों का नाम पारड़ी तिनके प्रभाव से सुखसे श्राकाश में गमन करें और अमोलिक वस्त्र और महादिव्य भामरण । अमेय वक्तर महा मनोहर मणियों के कुण्डल और अमोगदा खमा कनक वाण अनेक शास्त्र रहा सुन्दर महारण के जीतन हारे और पचास लाप हल कोटि से अधिक गाय अक्षय भण्डार और अयोध्या
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