Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुरागा 19९४
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को धरे लंका प्रवेश करते भए तिनको देख लोक अति हर्षित भए जन्मान्तरके धर्म के फल प्रत्यक्ष देखते भए राजमार्ग में जाते श्रीराम लक्षमण तिनको देख नगरके नर और नारियों को अपूर्व आनंद भया फूल रहे हैं मुख जिनके स्त्री झरोखावों में बैठी जालियों में होय देखे हैं कमल समान हैं मुख जिन के महाकौतुक कर युक्त परस्पर बार्ता करे हैं हे सखी देखो यह राम राजादशरथ का पुत्रगुणरूप रनों की राशि पूर्णमासीके चन्द्रमा समान है वदन जिसका कमल समान हैं नेत्र जिसके अद्भुत पुण्यकर यह पद पाया है प्रतिप्रशंसा योग्य है श्राकार जिनका धन्य हैं वह कन्या जिन्होंने ऐसे बर पाए जाने यहबर पाए उसने कीर्तिका थंभ लोक विषे थापा जिसने जन्मान्तरमें धर्म श्राचरा होय सोही ऐसा नाथ पांवे उससमान और नारी कौन जिसका यश अत्यन्त राजा जनककी पुत्री महाकल्याण रूपणी जन्मांतर में महा पुण्यं उपाजें हैं इसलिये ऐसे पति जैसे शची इंद्र के तैसे सीता रामके और यह लक्षमण बासुदेव चक्रपाणि शोभे है जिसने सुरेन्द्रसमान रावण रणमेहता नीलकमलसमान कांतिजिसकी और गौर कांतिकर संयुक्त जो बलदेव श्रीरामचन्द्र तिनसहित ऐसे सोहे जैसे प्रयाग विषे गंगा यमुना के प्रवाहका मिलाप सो है। और यह राजा चन्द्रोदय का पुत्र विराधित है जिसने लक्षमण से प्रथम मिलापकर विस्तीर्ण विभूति पाई और यह राजा सुग्रीव किहकंधापुर का धनी महा पराक्रमी जिसने श्रीराम देव से परम प्रीति जनाई और यह सीताका भाई भामंडल राजा जनक का पुत्र चन्द्रगति विद्याधरने पाला सो विद्याधरों का इंद्र है और यह अंगदकुमार राजा सुग्रीवका पुत्र जो रावणको बहुरूपिणी विद्या साधते विघ्न का उद्यमी भया और हे सखि यह हनूमान महासुन्दर उतंग हाथियों के रथ चढा पवनकर हाले है बानर के चिन्ह
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