Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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नद्य pite
१९२ ।
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मुनि भए रतिवधन तपकर जहां भाई का जीव देवथा वहां ही देव भया फिर दोनों भाई स्वर्गसे चयकर राजकुमार भए एकका नाम उर्व दूजेका नाम उर्वस, राजा नरेन्द्र राणी विजिया के पुत्र फिर जिनधर्म का आराधनकर स्वर्ग में देव भए वहांसे चयकर तुम दोनों भाई रावणके राणी मन्दोदरी उसके इन्द्रजीत मेघनाद पुत्र भए और नन्दी सेटके स्त्री इन्दुमुखी रतिवर्धन की माता सो जन्मांतर में मन्दोदरी भई पूर्व जन्म में स्नेह था सो अभी माता का पुत्रसे प्रतिस्नेह भया कैसी है मन्दोदरी जिनधर्म में यासक्त है चित्त जिसका यह अपने पूर्व भव सुन दोनों भाई संसार की मायासे विरक्त भए उपजा है महा बैराग्य जिनको जैनेश्वरी दीक्षा चादरी और कुम्भकर्ण मारीच राजा मय और भी बड़े बड़े राजा संसारसे महा विरक्त होय मुनि भए तजे हैं विषय कषाय जिन्होंने विद्याधरोंके राजकीविभूति तृणवत् तजी महा योगीश्वर हो नेक ऋद्धि धारक भए पृथिवी विहार करते भव्यों को प्रतिबोधते भए, श्री मुनि सुव्रतनाथ के मुक्तिगए पीछे तिनके तीर्थ में यह बड़े बड़े महा पुरुष भए परम तपके धारक अनेक ऋद्धि संयुक्त वह भव्य जीवों को बारम्बार वन्दिवे योग्य हैं, और मन्दोदरी पति और पुत्रोंके विरह कर अंतिव्याकुल भई. महा शोककर मूर्छा को प्राप्त भई फिर सचेत होय कुरचिकी न्याईं विलाप करती भई दुखरूप समुद्र मग्न होय हाय पुत्र इन्द्रजीत मेघनाद यह क्या उद्यम किया मैं तुम्हारी माता प्रतिदीन उसे क्यों जी यह तुमको कहां योग्य कि दुखकर तप्तायमान जोमाता उसका समाधान किये बगैर उठगए हाय पुत्र हो तुम कैसे मुनि धारोगे तुम देवों सारिखे महाभोगी शरीर को लडावन हारे कठोर भूमिपर कैसे शयन करोगे समस्त विभवतजा समस्त विद्या तजी केवल अध्यात्म विद्या में तत्पर भए और राजा मय
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