Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म पुराण 1508
लेगया स्नेह कर घर में राखी एक दिन रति में उसने राजा के मस्तक में चरण की लात दई प्रात समय सभा में राजाने पंडतों से पूछा जिसने मेरा सिर पांव कर हता होय उसका क्या करना तब मूर्ख पंडित कहते भए हे देव उसका पांव छेदना अथवा प्राणहरने उससमय एक हेमांक नामा ब्राह्मण राजा के अभिप्राय का वेत्ता कहताभया उसके पांचकी आभूषणादि कर पूजा करिये तब राजाने हेमांक को पूछी हे पंडित तुमने रहस्य कैसे जाना तब उसने कही स्त्री के दन्तों के तुम्हारे अधरोंमें चिन्ह दीखे इस लिये यह जानी स्रो के पांकी लगी तब राजाने हेमांकको अभिप्राय का बेत्ता जान अपना निकट कृपापात्र किया बड़ो ऋद्ध दई सो हेमांक घाके पास एक मित्र यशानामा विधवा ब्राह्मणी महादुःख अमोघ सर नाम ब्राह्मणकी स्त्री है सो रहे सो अपने पुत्र को शिक्षा देती थी भरतार के गुण चितार चितार कहती थी हे पुत्र वाल अवस्था में जो विद्याको अभ्यास करे सो हेमांककी न्याई महा विभूति को प्राप्त होय इस हेमांक ने बाल अवस्थामें विद्याका अभ्यास किया सो अब इसकी कीर्ति देख और तेरा बाप धनुष बाण विद्यामें अति प्रवीण थे उसके तुम सुपुत्र भये प्रांसू डार माता ने यह वचन कहे उसके वचन सुन माताको धीर्य बंधाया महाअभिमान का धारक यह श्रीवर्धित नामा पुत्र विद्यासीखने केअर्थव्याघपुर नगरगया सो गुरुके निकट शस्त्र शास्त्रसर्व विद्या सीखी और इस नगरके राजा सुकांतकी शीला नामा पुत्री उसे ले निकसा तब कन्या का भाई सिंहचन्द्र इस ऊपर चढ़ा सो इस अकेले ने शस्त्र विद्या के प्रभाव कर सिंहचन्द्र को जीता और स्त्री सहित माता के निकट अाया माता को हर्ष उपजाया शस्त्र कला कर इस की पृथिवी विषे प्रसिद्ध कीर्ति भई सो शस्त्र केबल कर पोदनापुर के राजाराजाकरूरुह
For Private and Personal Use Only