Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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॥८१५॥
शासनके भक्त देव मेरी सहाय करो, अंगदके किंकर इसे विभीषणके मंदिर श्रीराम विराजेथे वहां लेगए। पुराण श्रीराम दूर से देख इसे नारद जान सिंहासनसे उठे अति आदर किया और किंकरोंसे कही इन से |
दूर जावो नारद श्रीराम लक्षमणको देख अति हर्षित भया आशीर्वाद देकर इनके समीप बैठा तब मार बोले अहो क्षल्लक कहां सेत्राए बहुतदिनों में पाएहो नीके हो तब नारदने कहाँ तुम्हारी माताकष्ट के सागर में मग्न है सो वार्ता कहिवे को तुम्हारे निकट शीघ्र ही आया हूं कौशल्या माता महासती जिनमती निरंतर अश्रुपात डारे है और तुम बिना महा दुखी है जैसे सिंही अपने बालक बिना व्याकुल होय तैसे अति व्याकुल भई विलाप करे है जिसका विलाप सुन पापाण भी द्रवाभूत होय तुमसे पुत्र माता के प्राज्ञाकारी
और तुम होते माता ऐसी कष्टरूपरहे यह आश्चर्य की बात, वह महागुणवती सांझ सकार में प्राण रहित होयगी जो तुमताहि न देखोगे तो तुम्हारे वियोग रूप सूर्यकर सूक जायगी इसलिये मोपे कृपा करो उठो उसे शीघ ही देखो इस संसार में माता समान पदार्थ नहीं तुम्हारी दोनों मातावों के दुख करके केकई सुप्रभा सवही दुखी हैं कौशल्या सुमित्रा दोनों मरण तुल्य होय रही हैं श्राहार नींद सब गई रात दिन प्रांसू डारे हैं तिनकी स्थिरता तुम्हारे दर्शन ही से होय जैसे कुरुचि विलाप करे तैसे विलाप करे हैं और सिर और उर हाथों से कूटे हैं दोनों ही माता तुम्हारे वियोग रूप अग्नि की ज्वाला कर जरे हैं तुम्हारे दर्शन रूप अमृत की धार कर उनका अाताप निवारो ऐसे नारद के वचन सुनदोनों भाई मातावोंके दुख
कर अति दुखी भए शस्त्र डार दीए और रुदन करनेलगे तब सकल विद्याधरोंने धीर्य बंधाया राम लक्षण | नारदसे कहतेभए महो नारद तुमने हमारा बड़ा उपकार किया हम दुराचारी माताको भूल गए सो तुम
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